भारत का प्राचीन औद्योगिक विकास
ये लेख स्व.श्री राजीव जी दीक्षित के व्याख्यान के आधार पर तैयार किया गया है।
इस लेख मे शिक्षा व्यवस्था के बारे में, थोड़ी तकनीकी और विज्ञान की बातें और थोड़ी सी कृषि व्यवस्था के विषय मे चर्चा होगी।
उद्योगों के साथ-साथ इस देश में विज्ञान और तकनीकी का भी बहुत विकास हुआ है. और हमारे अतीत के भारत की विज्ञान और तकनीकी के बारे में दुनिया भर के बहुत सारे शोधकर्ताओ ने बहुत सारी पुस्तके लिखी है. ऐसा ही एक अंग्रेज है जिसका नाम है जी डब्लू लिट्नेर,वो भारत में कभी लम्बे समय तक रहा और एक दूसरा अंग्रेज जिसका नाम थामस मुनरो, ये भी भारत में काफी दिनों तक रहा. ये दोनों ने भारत की शिक्षा व्यवस्था पर बहुत ज्यादा काम किया है. एक और अंग्रेज है जिसका नाम टेंडरक्रस्ट,उसने भारत की टेक्नोलोजी और विज्ञान पर बहुत ज्यादा काम किया है. और एक अंग्रेज है केम्पबेल कर के उसने भी भारत की विज्ञान और तकनीकी पर बहुत ज्यादा काम किया है. केम्पबेल का एक छोटा सा वाक्य,वो ये कहता है “जिस देश में उत्पादन सबसे अधिक होता है, ये तभी संभव है जब उस देश में कारखाने हो, और कारखाने किसी देश में तभी संभव है, जब वहां पर कोई तकनीकी हो, टेक्नोलोजी हो, और टेक्नोलोजी किसी देश में तभी संभव है जब वहां पर विज्ञान हो. और विज्ञान किसी देश में मूल रूप से शोध के लिए अगर प्रस्तुत है तो उसमे से तकनीकी का निर्माण होता है. मतलब इस वाक्य को सरल तरीके से हम समझे कि मूल विज्ञान होता है जिसको हम आज की अंग्रेजी भाषा में फंडामेंटल साइंस कहते है फिर उसमे से एप्लाइड साइंस निकलता है वो प्रायोगिक विज्ञान होता है. और उस प्रायोगिक विज्ञान में से तकनीकी निकलती है और उस तकनीकी में से कारखाने निकलते है. और उन कारखानों से फिर उत्पादन होता है, वो उत्पादन फिर सारी दुनिया में बिकता है. तो ये बात अगर केम्पबेल कहता है कि भारत में टेक्नोलोजी हजारो सालो से रही है तो कारखाने भी रहे होंगे तो उसके बारे में जब खोज की गई तो पता चला के १८ वी शताब्दी तक इस देश में इतनी बेहतरीन टेक्नोलोजी रही है स्टील बनाने की जो दुनिया में कोई आज कल्पना नहीं कर सकता. स्टील बनाने की जो टेक्नोलोजी भारत में रही है, लोहा इस्पात बनाने की टेक्नोलोजी जो भारत में रही है, दुनिया में किसी देश के पास नहीं है. अंग्रेजो का ये जो अधिकारी है केम्पबेल वो ये कहता है कि भारत का बनाया हुआ लोहा, भारत का बनाया हुआ इस्पात, सारी दुनिया में सर्वश्रेष्ट माना जाता है. उसके बारे में वो एक मुहावरा दे रहा है और वो ये कह रहा है कि इंग्लैंड में या यूरोप में अच्छे से अच्छा जो लोहा बनता है वो भारत के घटिया से भी घटिया लोहे का भी मुकाबला नहीं कर सकता. ये केम्पबेल सन १८४२ में कह रहा है. वो ये कह रहा है कि इंग्लैंड और पुरे यूरोप में जो अच्छे से अच्छी जो स्टील बन रही है वो भारत की घटिया से भी घटिया स्टील का भी मुकाबला नहीं कर सकती. माने भारत की घटिया से घटिया स्टील भी इंग्लैंड और यूरोप की अच्छे से अच्छी स्टील से अच्छी है. उसके बाद एक जेम्स फ्रेंक्लिन नाम का अंग्रेज है बहुत बड़ा उसको जो है धातु कर्मी विशेषज्ञ माना जाता है. वो ये कहता है कि भारत का स्टील दुनिया दुनिया में सर्वश्रेष्ट है. यूरोप में सबसे अच्छा स्टील बनता है इस समय स्वीडन में लेकिन भारत का स्टील उससे कई गुना अच्छा है. भारत के कारीगर स्टील को बनाने के लिए भट्टिया तैयार करते है वो भट्टिया जिनको हम अंग्रेजी में ब्लास्ट फर्नेस कहते है वो दुनिया में कोई नहीं बना पाता. वो कहता है कि इंग्लैंड में लोहा बनाना तो हमने १९२५ के बाद शुरु किया भारत में तो लोहा १० वी. सताब्दी से ही हजारो हजारो टन में बनता रहा है और दुनिया के देशो में बिकता रहा है. . वो ये कहता है कि में सन १७६४ में भारत से स्टील का एक नमूना ले के आया था मैंने इंग्लैंड के सबसे बड़े विशेषज्ञ डॉ. स्कॉट को स्टील दिया था, और उनको ये कहा था कि लन्दन रॉयल सोसाइटी की तरफ से आप इसकी जाँच कराइए डॉ स्कॉट ने भारत के उस स्टील की जाँच कराइ तो कहा कि ये भारत का स्टील इतना अच्छा है कि सर्जरी के लिए बनाए जाने वाले सारे उपकरण इससे बनाए जा सकते है. जो दुनिया में किसी दुसरे देश के पास उपलब्ध नहीं है. आप जानते है सर्जरी के लिए जो उपकरण बनाए जाते है चाकू बनाए जाते है, छुरिया बनाई जाती है, कैंचिया बनाई जाती है, टांका लगाने के लिए सुई बनाई जाती है. ऐसे १०० से ज्यादा उपकरण सर्जरी के लिए बनाए जाते है, तो डॉ. स्कॉट कह रहे है इस बात को १७६४ में कि दुनिया में किसी भी देश के पास सर्जरी के लायक बनाने वाला स्टील नहीं है, क्योकि उनकी क्वालिटी अच्छी नहीं है. लेकिन भारत का स्टील जो मेरे पास आया है, ये इतना अदभुत है कि इससे सर्जरी के सारे उपकरण हम बना सकते है. फिर वो अंत में कह रहे है कि मुझे ऐसा लगता है कि भारत का ये स्टील हम पानी में भी डालकर रक्खे तो इनमे कभी जंग नहीं लगेगा, क्योकि इसकी क्वालिटी इतनी अच्छी है. आप जानते है कि लोहा या स्टील दुनिया में एक ऐसी वस्तु है जो थोड़ी देर के लिए भी पानी के संपर्क में आए, नमी के संपर्क में आए, तो सबसे पहले उसमे जंग लगती है जिसको हम सबलोग अंग्रेजी में रस्टिंग कहते है. लेकिन स्कॉट कह रहा है भारत के स्टील के बारे में कि मुझे लगता है कि इसको पानी में भी डालके रखे तो बिलकुल जंग नहीं लगेगी, इस क्वालिटी का स्टील भारत में बन रहा है.
अब इससे थोड़ा आगे चालू अगर स्टील इतनी अच्छी क्वालिटी का है तो एक अंग्रेज अधिकारी है उसका नाम है लेफ्टिनेंट कर्नल ए. वाकर, उसने भारत के शिपिंग इंडस्ट्री पर में सबसे ज्यादा रिसर्च किया है. वो ये कहता है कि भारत का जो अदभुत लोहा है, स्टील है ये जहांज बनाने के काम में बहूत ज्यादा आता है. और वो कहता है कि दुनिया में दुनिया में जहांज बनाने की सबसे पहली कला और सबसे पहली तकनिकी भारत में ही विकसित हुई है. और दुनिया के देशो ने पानी के जहांज बनाना भारत से सीखा है. और किसी देश के पास पानी का जहांज बनाने की तकनिकी उपलब्ध ही नहीं रही है. फिर वो कहता है कि भारत इतना विशाल देश है इसमें लगभग २ लाख गाँव है, इन २ लाख गावों को समुद्र के किनारे स्थापित हुआ माना जाता है. इन सभी गावों में जहांज बनाने का काम पिछले हजारों वर्षो से चलता है. वो ये कहता है कि हम अंग्रेज लोगों को जहांज खरीदना हो तो हम भारत में जाते है और वहां से जहांज खरीद कर लाते है. फिर वो अपने आगे लिख रहा है कि ईस्ट इंडिया कंपनी के जितने भी पानी के जहांज दुनिया में चल रहे है ये सारे के सारे जहांज भारत की स्टील से बने है. ये बात मुझे कहते हुए शर्म आती है के हम अंग्रेज अभी तक इतनी अच्छी क्वालिटी का स्टील बनाना नहीं शुरु कर पाए है. फिर वो कहता है कि भारत का कोई पानी का जहांज जो पचास साल चल चूका है पानी में, उसको अगर हम खरीद ले अंग्रेज, और खरीदने के बाद उसको कंपनी की सेवा में लगाये तो पचास साल तो वो भारत में चल चूका है, हमारे यहाँ आने के बाद भी वो बीस पच्चीस साल और चल जाता है. इतनी मजबूत पानी के जहांज बनाने की कला और टेक्नोलोजी भारत के कारीगरों के हाँथ में है. और फिर वो वो कहता है के हम जितने धन में एक नया पानी का जहांज बनाते है, उतने ही धन में भारतवासी चार नए जहांज पानी के बना लेते है. फिर वो अंत में कहता है के हम भारत में पुराने पानी के जहांज ख़रीदे, और उसको ईस्ट इंडिया कंपनी की सेवा में लगाए यही हमारे लिए अच्छा है. नया जहांज बना कर हम ईस्ट इंडिया कंपनी को दिवालिया नहीं कर सकते है, उसके पैसे बर्बाद नहीं कर सकते है. मतलब उसका कहने का ये है कि भारत का पुराने से पुराना पानी का जहांज अंग्रेजो के नए से नए पानी के जहांज से भी अच्छा माना जाता है. क्योंकि स्टील की क्वालिटी, लोहे की क्वालिटी इतनी जबरदस्त है.
और इसी तरह से वो कहता है कि भारत में टेक्नोलोजी के लेवल पर ईंट बनती है, ईंट से ईंट को जोड़ने का चूना बनता है.
और उसके अलावा भारत में ३६ तरह के दुसरे टेक्नोलोजिकल इंडस्ट्रीज है, ये सभी उद्योगों में भारत दुनिया में सबसे आगे है. इसलिए हमें भारत से व्यापार कर के ये सब sतकनिकी लेनी है, और इस तकनिकी को इंग्लैंड में ला कर फिर से उसको रिप्रोडूस करना है, पुनरुत्पादित करना है. तो भारत टेक्नोलोजी में बहूत ऊँचा है, और इसी तरह से विज्ञान में भी बहुत ऊँचा है. भारत के विज्ञान के बारे में एक दो नहीं बिसियो अंग्रेजो ने रिसर्च की है, शोध की है, और वो ये कहते है कि भारत में विज्ञान की बीस से ज्यादा शाखाए है, जो बहुत ज्यादा पुष्पित और पल्लवित हुई है. उनमे सबसे बड़ी शाखा है वो खगोल विज्ञान है, दूसरी बड़ी शाखा है वो नक्षत्र विज्ञान है, तीसरी बड़ी शाखा है बर्फ बनाने का विज्ञान है, चौथी बड़ी शाखा है और ऐसे कर कर के धातु विज्ञान है, फिर उसके बाद भवन निर्माण के विज्ञान की है. तो ऐसी बीस तरह की वैज्ञानिक शाखाए पूरे भारत में है ।
इस लेख का उद्देश्य केवल भारत के प्राचीन गौरव का बोध कराना है,,कृपया इस लेख को वर्तमान के सन्दर्भ मे जोडकर नहीं देखा जावे।
इस लेख मे शिक्षा व्यवस्था के बारे में, थोड़ी तकनीकी और विज्ञान की बातें और थोड़ी सी कृषि व्यवस्था के विषय मे चर्चा होगी।
उद्योगों के साथ-साथ इस देश में विज्ञान और तकनीकी का भी बहुत विकास हुआ है. और हमारे अतीत के भारत की विज्ञान और तकनीकी के बारे में दुनिया भर के बहुत सारे शोधकर्ताओ ने बहुत सारी पुस्तके लिखी है. ऐसा ही एक अंग्रेज है जिसका नाम है जी डब्लू लिट्नेर,वो भारत में कभी लम्बे समय तक रहा और एक दूसरा अंग्रेज जिसका नाम थामस मुनरो, ये भी भारत में काफी दिनों तक रहा. ये दोनों ने भारत की शिक्षा व्यवस्था पर बहुत ज्यादा काम किया है. एक और अंग्रेज है जिसका नाम टेंडरक्रस्ट,उसने भारत की टेक्नोलोजी और विज्ञान पर बहुत ज्यादा काम किया है. और एक अंग्रेज है केम्पबेल कर के उसने भी भारत की विज्ञान और तकनीकी पर बहुत ज्यादा काम किया है. केम्पबेल का एक छोटा सा वाक्य,वो ये कहता है “जिस देश में उत्पादन सबसे अधिक होता है, ये तभी संभव है जब उस देश में कारखाने हो, और कारखाने किसी देश में तभी संभव है, जब वहां पर कोई तकनीकी हो, टेक्नोलोजी हो, और टेक्नोलोजी किसी देश में तभी संभव है जब वहां पर विज्ञान हो. और विज्ञान किसी देश में मूल रूप से शोध के लिए अगर प्रस्तुत है तो उसमे से तकनीकी का निर्माण होता है. मतलब इस वाक्य को सरल तरीके से हम समझे कि मूल विज्ञान होता है जिसको हम आज की अंग्रेजी भाषा में फंडामेंटल साइंस कहते है फिर उसमे से एप्लाइड साइंस निकलता है वो प्रायोगिक विज्ञान होता है. और उस प्रायोगिक विज्ञान में से तकनीकी निकलती है और उस तकनीकी में से कारखाने निकलते है. और उन कारखानों से फिर उत्पादन होता है, वो उत्पादन फिर सारी दुनिया में बिकता है. तो ये बात अगर केम्पबेल कहता है कि भारत में टेक्नोलोजी हजारो सालो से रही है तो कारखाने भी रहे होंगे तो उसके बारे में जब खोज की गई तो पता चला के १८ वी शताब्दी तक इस देश में इतनी बेहतरीन टेक्नोलोजी रही है स्टील बनाने की जो दुनिया में कोई आज कल्पना नहीं कर सकता. स्टील बनाने की जो टेक्नोलोजी भारत में रही है, लोहा इस्पात बनाने की टेक्नोलोजी जो भारत में रही है, दुनिया में किसी देश के पास नहीं है. अंग्रेजो का ये जो अधिकारी है केम्पबेल वो ये कहता है कि भारत का बनाया हुआ लोहा, भारत का बनाया हुआ इस्पात, सारी दुनिया में सर्वश्रेष्ट माना जाता है. उसके बारे में वो एक मुहावरा दे रहा है और वो ये कह रहा है कि इंग्लैंड में या यूरोप में अच्छे से अच्छा जो लोहा बनता है वो भारत के घटिया से भी घटिया लोहे का भी मुकाबला नहीं कर सकता. ये केम्पबेल सन १८४२ में कह रहा है. वो ये कह रहा है कि इंग्लैंड और पुरे यूरोप में जो अच्छे से अच्छी जो स्टील बन रही है वो भारत की घटिया से भी घटिया स्टील का भी मुकाबला नहीं कर सकती. माने भारत की घटिया से घटिया स्टील भी इंग्लैंड और यूरोप की अच्छे से अच्छी स्टील से अच्छी है. उसके बाद एक जेम्स फ्रेंक्लिन नाम का अंग्रेज है बहुत बड़ा उसको जो है धातु कर्मी विशेषज्ञ माना जाता है. वो ये कहता है कि भारत का स्टील दुनिया दुनिया में सर्वश्रेष्ट है. यूरोप में सबसे अच्छा स्टील बनता है इस समय स्वीडन में लेकिन भारत का स्टील उससे कई गुना अच्छा है. भारत के कारीगर स्टील को बनाने के लिए भट्टिया तैयार करते है वो भट्टिया जिनको हम अंग्रेजी में ब्लास्ट फर्नेस कहते है वो दुनिया में कोई नहीं बना पाता. वो कहता है कि इंग्लैंड में लोहा बनाना तो हमने १९२५ के बाद शुरु किया भारत में तो लोहा १० वी. सताब्दी से ही हजारो हजारो टन में बनता रहा है और दुनिया के देशो में बिकता रहा है. . वो ये कहता है कि में सन १७६४ में भारत से स्टील का एक नमूना ले के आया था मैंने इंग्लैंड के सबसे बड़े विशेषज्ञ डॉ. स्कॉट को स्टील दिया था, और उनको ये कहा था कि लन्दन रॉयल सोसाइटी की तरफ से आप इसकी जाँच कराइए डॉ स्कॉट ने भारत के उस स्टील की जाँच कराइ तो कहा कि ये भारत का स्टील इतना अच्छा है कि सर्जरी के लिए बनाए जाने वाले सारे उपकरण इससे बनाए जा सकते है. जो दुनिया में किसी दुसरे देश के पास उपलब्ध नहीं है. आप जानते है सर्जरी के लिए जो उपकरण बनाए जाते है चाकू बनाए जाते है, छुरिया बनाई जाती है, कैंचिया बनाई जाती है, टांका लगाने के लिए सुई बनाई जाती है. ऐसे १०० से ज्यादा उपकरण सर्जरी के लिए बनाए जाते है, तो डॉ. स्कॉट कह रहे है इस बात को १७६४ में कि दुनिया में किसी भी देश के पास सर्जरी के लायक बनाने वाला स्टील नहीं है, क्योकि उनकी क्वालिटी अच्छी नहीं है. लेकिन भारत का स्टील जो मेरे पास आया है, ये इतना अदभुत है कि इससे सर्जरी के सारे उपकरण हम बना सकते है. फिर वो अंत में कह रहे है कि मुझे ऐसा लगता है कि भारत का ये स्टील हम पानी में भी डालकर रक्खे तो इनमे कभी जंग नहीं लगेगा, क्योकि इसकी क्वालिटी इतनी अच्छी है. आप जानते है कि लोहा या स्टील दुनिया में एक ऐसी वस्तु है जो थोड़ी देर के लिए भी पानी के संपर्क में आए, नमी के संपर्क में आए, तो सबसे पहले उसमे जंग लगती है जिसको हम सबलोग अंग्रेजी में रस्टिंग कहते है. लेकिन स्कॉट कह रहा है भारत के स्टील के बारे में कि मुझे लगता है कि इसको पानी में भी डालके रखे तो बिलकुल जंग नहीं लगेगी, इस क्वालिटी का स्टील भारत में बन रहा है.
अब इससे थोड़ा आगे चालू अगर स्टील इतनी अच्छी क्वालिटी का है तो एक अंग्रेज अधिकारी है उसका नाम है लेफ्टिनेंट कर्नल ए. वाकर, उसने भारत के शिपिंग इंडस्ट्री पर में सबसे ज्यादा रिसर्च किया है. वो ये कहता है कि भारत का जो अदभुत लोहा है, स्टील है ये जहांज बनाने के काम में बहूत ज्यादा आता है. और वो कहता है कि दुनिया में दुनिया में जहांज बनाने की सबसे पहली कला और सबसे पहली तकनिकी भारत में ही विकसित हुई है. और दुनिया के देशो ने पानी के जहांज बनाना भारत से सीखा है. और किसी देश के पास पानी का जहांज बनाने की तकनिकी उपलब्ध ही नहीं रही है. फिर वो कहता है कि भारत इतना विशाल देश है इसमें लगभग २ लाख गाँव है, इन २ लाख गावों को समुद्र के किनारे स्थापित हुआ माना जाता है. इन सभी गावों में जहांज बनाने का काम पिछले हजारों वर्षो से चलता है. वो ये कहता है कि हम अंग्रेज लोगों को जहांज खरीदना हो तो हम भारत में जाते है और वहां से जहांज खरीद कर लाते है. फिर वो अपने आगे लिख रहा है कि ईस्ट इंडिया कंपनी के जितने भी पानी के जहांज दुनिया में चल रहे है ये सारे के सारे जहांज भारत की स्टील से बने है. ये बात मुझे कहते हुए शर्म आती है के हम अंग्रेज अभी तक इतनी अच्छी क्वालिटी का स्टील बनाना नहीं शुरु कर पाए है. फिर वो कहता है कि भारत का कोई पानी का जहांज जो पचास साल चल चूका है पानी में, उसको अगर हम खरीद ले अंग्रेज, और खरीदने के बाद उसको कंपनी की सेवा में लगाये तो पचास साल तो वो भारत में चल चूका है, हमारे यहाँ आने के बाद भी वो बीस पच्चीस साल और चल जाता है. इतनी मजबूत पानी के जहांज बनाने की कला और टेक्नोलोजी भारत के कारीगरों के हाँथ में है. और फिर वो वो कहता है के हम जितने धन में एक नया पानी का जहांज बनाते है, उतने ही धन में भारतवासी चार नए जहांज पानी के बना लेते है. फिर वो अंत में कहता है के हम भारत में पुराने पानी के जहांज ख़रीदे, और उसको ईस्ट इंडिया कंपनी की सेवा में लगाए यही हमारे लिए अच्छा है. नया जहांज बना कर हम ईस्ट इंडिया कंपनी को दिवालिया नहीं कर सकते है, उसके पैसे बर्बाद नहीं कर सकते है. मतलब उसका कहने का ये है कि भारत का पुराने से पुराना पानी का जहांज अंग्रेजो के नए से नए पानी के जहांज से भी अच्छा माना जाता है. क्योंकि स्टील की क्वालिटी, लोहे की क्वालिटी इतनी जबरदस्त है.
और इसी तरह से वो कहता है कि भारत में टेक्नोलोजी के लेवल पर ईंट बनती है, ईंट से ईंट को जोड़ने का चूना बनता है.
और उसके अलावा भारत में ३६ तरह के दुसरे टेक्नोलोजिकल इंडस्ट्रीज है, ये सभी उद्योगों में भारत दुनिया में सबसे आगे है. इसलिए हमें भारत से व्यापार कर के ये सब sतकनिकी लेनी है, और इस तकनिकी को इंग्लैंड में ला कर फिर से उसको रिप्रोडूस करना है, पुनरुत्पादित करना है. तो भारत टेक्नोलोजी में बहूत ऊँचा है, और इसी तरह से विज्ञान में भी बहुत ऊँचा है. भारत के विज्ञान के बारे में एक दो नहीं बिसियो अंग्रेजो ने रिसर्च की है, शोध की है, और वो ये कहते है कि भारत में विज्ञान की बीस से ज्यादा शाखाए है, जो बहुत ज्यादा पुष्पित और पल्लवित हुई है. उनमे सबसे बड़ी शाखा है वो खगोल विज्ञान है, दूसरी बड़ी शाखा है वो नक्षत्र विज्ञान है, तीसरी बड़ी शाखा है बर्फ बनाने का विज्ञान है, चौथी बड़ी शाखा है और ऐसे कर कर के धातु विज्ञान है, फिर उसके बाद भवन निर्माण के विज्ञान की है. तो ऐसी बीस तरह की वैज्ञानिक शाखाए पूरे भारत में है ।
इस लेख का उद्देश्य केवल भारत के प्राचीन गौरव का बोध कराना है,,कृपया इस लेख को वर्तमान के सन्दर्भ मे जोडकर नहीं देखा जावे।
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