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Showing posts from February, 2019

शिवतत्त्व

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ॐ कार सहित शिव लिंग संहिता ॐ कार का अर्थ एवं महत्त्व ॐ = अ+उ+म+(ँ) अर्ध तन्मात्रा। ॐ का अ कार स्थूल जगत का आधार है (रजोगुण सहित स्रष्टि की रचना) । उ कार सूक्ष्म जगत का आधार है (सत्व गुण सहित सूक्ष्म रूप से स्रष्टि की पालन कार्य , जीव अंश प्रधान करता है )। म कार कारण जगत का आधार है (तमो गुण सहित संपूर्ण द्रष्य स्रष्टि को लय करता है । अर्ध तन्मात्रा (ँ) जो इन तीनों जगत से प्रभावित नहीं होता बल्कि तीनों जगत जिससे सत्ता- स्फूर्ति लेते हैं यही त्रिगुणात्मक शक्ति है (०) बिंदु (शुन्य ) अर्थात अवर्णनीय ,अपरिमित , अविरल ( दुर्लभ ),अखंड , शाश्वत चित्त( चित्त -ज्ञान), ,शक्ति विशिष्ट शिव का अव्यक्त रूप ,अनिर्वचनीय ( वाचा जिसे ना पकड़ पाए) , ,अगोचर , सिद्धांत शिखा मणि मे इस तत्व के लिए वर्णन आता है..”अपरप्रत्यम ( जो दूसरों को न दिखाया जा सके )शान्तम( शांत रूप ) प्रपंचैर अप्रपंचितम( रूप रस आदि प्रपंचैर गुणों की तरह जिसका वर्णन ना किया जा सके…वह इनसे नहीं जुड़ा है … ) निर्विकलाप्म( कल्पना से परे ..जिसकी कल्पना भी नहीं कर सकते ) अनानार्थम( अनेकानेक अर्थों से भी हम जिसका अर्थ ना कर सकें ) एतत

पेट्रोलियम

पेट्रोलियम का मतलब है पथ्थर का तेल, ये ग्रीक शब्द है । petra= rocks + elaion= oil. पथ्थर का तेल कुदरती रूप में मिलता है जीस का रंग काला या पिला हो सकता है । ये असली कुदरती पदार्थों से नही बनता है पर जिवाश्म से बनता है, वनस्पति या प्राणी के मृत शरीर से बनता है। इसलिए उसे अश्मिजन्य तेल भी कहा जाता है । ये हाइड्रोकार्बन के विविध रूप है । जुरासिस युग में धरती पर की पूरी जीवसृष्टि धरती में दब गयी थी । धरती में दबा हुआ जीव का शरीर प्रचंड दबाव और गरमी के कारण पथ्थर ( जिवाश्म) बन गया है । उन्हीं पथ्थरों तक पहुंच कर, पथ्थरों में प्रोसेस कर के आज का मानव तेल और गॅस खींच कर लाता है ।   इतिहास इतिहास बहुत लंबा और ४००० साल पूराना है । ग्रीस में धनवानो के मेहलों में रोशनी के लिए मशालें जलाते थे । इसा पूर्व की छठी सदी में पारसी ( ईरानी ) सैनिक दुश्मन के किले जीतने के लिए क्रुडओइल के हथियारों का उपयोग करते थे । इसा पूर्व 325 में सिकंदर अपने दुश्मनो पर हमला करने के लिए जलती मशाल फैंकता था । पूरा इतिहास इस लिन्क पर http://www.geohelp.net/world.html 1807 तक आम आदमी के लिए ओइल के उपरोग की शुर

पुनर्जन्म एक विज्ञान

पुनर्जन्म का सिद्धांत :- यह विचारणीय बात है कि निसर्गतः अज्ञानी कृमिकीटों (कीड़े मकौड़ों) को भी अपने मृत्यु का पता कैसे लगा, और उस स्थान से दूसरे स्थान तक भाग जाने का उत्साह उसे किसने सिखाया ? इसका विचार करते करते विचारी मनुष्य पुनर्जन्म पर विशवास करने लगता है, और समझता है, कि प्रत्येक प्राणिमात्र के अन्दर जो यह मृत्यु का भय लगा हुआ है , वह मृत्यु के अनुभव के कारण ही है । पहले कई बार इसने स्वयं मृत्यु का अनुभव किया और देखा कि मृत्यु के समय क्या आपत्ति होती है । मृत्यु के अनिष्ट अनुभव का गुप्तज्ञान उसकी सूक्ष्मबुद्धि में छिपा हुआ है और यही उसे प्रेरणा करता है कि तुम मृत्यु से बचने का यत्न करो । अर्थात् पुनर्जन्म सत्य है , इसीलिए प्रत्येक प्राणी मृत्यु से भयभीत होता है ; यदि पूर्व मृत्यु का अनुभव न होता तो इस देह में आने के पश्चात मृत्यु कि कलप्ना भी किसी प्राणी को न होती और जिसकी कलप्ना भी नहीं होती उसके विषय में भय का होना सर्वथा असम्भव है । जीव अल्पज्ञ है त्रिकालदर्शी नहीं इसीलिए स्मरण नहीं रहता और जिस मन से ज्ञान करता है , वह भी एक समय में दो ज्ञान नहीं रख सकता । भला पूर्वजन्म

हमारे प्राचीन ऋषि

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* हिंदुस्तान के गौरवशाली ऋषि-मुनियों का वैज्ञानिक इतिहास ! ---------------------------------------------------- जिनमे से कुछ विवरण यहाँ हम दे रहें है .. --------------------------------------------- हिंदु वेदोंको मान्यता देते हैं और वेदोंमें विज्ञान बताया गया है । केवल सौ वर्षोंमें पृथ्वीको नष्टप्राय बनानेके मार्गपर लानेवाले आधुनिक विज्ञानकी अपेक्षा, अत्यंत प्रगतिशील एवं एक भी समाजविघातक शोध न करनेवाला प्राचीन ‘हिंदु विज्ञान’ था । पूर्वकालके शोधकर्ता हिंदु ऋषियोंकी बुद्धिकी विशालता देखकर आजके वैज्ञानिकोंको अत्यंत आश्चर्य होता है । पाश्चात्त्य वैज्ञानिकोंकी न्यूनता सिद्ध करनेवाला शोध सहस्रों वर्ष पूर्व ही करनेवाले हिंदु ऋषिमुनि ही खरे वैज्ञानिक शोधकर्ता हैं । ********************************************** गुरुत्वाकर्षण का गूढ उजागर करनेवाले भास्कराचार्य ! भास्कराचार्यजीने अपने (दूसरे) ‘सिद्धांतशिरोमणि’ ग्रंथमें विषयमें लिखा है कि, ‘पृथ्वी अपने आकाशका पदार्थ स्व-शक्तिसे अपनी ओर खींच लेती हैं । इस कारण आकाशका पदार्थ पृथ्वीपर गिरता है’ । इससे सिद्ध होता है कि, उन्होंने गुर

तीर्थ

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तीर्थ सब तीर्थ बहुत ख्‍याल से बनाये गए है। अब जै कि मिश्र में पिरामिड है। वे मिश्र में पुरानी खो गई सभ्‍यता के तीर्थ है। और एक बड़ी मजे की बात है कि इन पिरामिड के अंदर….। क्‍योंकि पिरामिड जब बने तब, वैज्ञानिको का खयाल है, उस काल में इलैक्ट्रिसिटी हो नहीं सकती। आदमी के पास बिजली नहीं हो सकती। बिजली का आविष्‍कार उस वक्‍त कहां, कोई दस हजार वर्ष पुराना पिरामिड है, कई बीस हजार वर्ष पुराना पिरामिड है। तब बिजली का तो कोई उपाय नहीं था। और इनके अंदर इतना अँधेरा कि उस अंधेरे में जाने का कोई उपाय नहीं है। अनुमान यह लगाया जा सकता है कि लोग मशाल ले जाते हों, या दीये ले जाते हो। लेकिन धुएँ का एक भी निशान नहीं है इतने पिरामिड में कहीं । इसलिए बड़ी मुश्‍किल है। एक छोटा सा दीया घर में जलाएगें तो पता चल जाता है। अगर लोग मशालें भीतर ले गए हों तो इन पत्‍थरों पर कहीं न कहीं न कहीं धुएँ के निशान तो होने चाहिए। रास्‍ते इतने लंबे, इतने मोड़ वाले है, और गहन अंधकार है। तो दो ही उपाय हैं, या तो हम मानें कि बिजली रही होगी लेकिन बिजली की किसी तरह की फ़िटिंग का कहीं कोई निशान नहीं है। बिजली पहुंचाने का कुछ

स्वर का सँक्षिप्त विज्ञान

प्राचीन भारत का वाणी , स्वर तथा संगीत विज्ञान: ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ प्राचीन भारत में वाणी विज्ञान का बहुत गहराई से विचार किया गया। ऋग्वेद में एक ऋचा आती है- चत्वारि वाक् परिमिता पदानि तानि विदुर्व्राह्मणा ये मनीषिण: गुहा त्रीणि निहिता नेङ्गयन्ति तुरीयं वाचो मनुष्या वदन्ति॥ [ऋग्वेद १.१६४.४५] अर्थात् - वाणी के चार भाग होते हैं, जिन्हें विद्वान मनीषी जानते हैं। इनमें से तीन शरीर के अंदर होने से गुप्त हैं परन्तु चौथे को अनुभव कर सकते हैं। इसकी विस्तृत व्याख्या करते हुए पाणिनी कहते हैं, वाणी के चार वर्ण या रूप हैं- १. परा, २. पश्यन्ती, ३. मध्यमा, ४. वैखरी जब मन, बुद्धि तथा अर्थ की सहायता से मन: पटल पर कर्ता, कर्म या क्रिया का चित्र देखता है, वाणी का यह रूप पश्यन्ती कहलाता है। लेखक सुरेश सोणी जी कहते है - "हम जो कुछ बोलते हैं, पहले उसका चित्र हमारे मन में बनता है। इस कारण दूसरा चरण पश्यन्ती है।" इसके आगे मन व शरीर की ऊर्जा को प्रेरित कर न सुनाई देने वाला ध्वनि का बुद्बुद् उत्पन्न करता है। वह बुद्बुद् ऊपर उठता है तथा छाती से नि:श्वास की सहायता से कण्ठ तक आ

धर्म

धर्म (Dharma) =  आत्मा भारत की what is dharma :- किसी भी वस्तु के स्वाभाविक गुणों को उसका धर्म कहते है जैसे अग्नि का धर्म उसकी गर्मी और तेज है। गर्मी और तेज के बिना अग्नि की कोई सत्ता नहीं। अत: मनुष्य का स्वाभाविक गुण मानवता है। यही उसका धर्म है। कुरान कहती है – मुस्लिम बनो। बाइबिल कहती है – ईसाई बनो। किन्तु वेद कहता है – मनुर्भव अर्थात मनुष्य बन जावो (ऋग्वेद 10-53-6)। अत: वेद (Ved) मानवधर्म का नियम शास्त्र है। जब भी कोई समाज, सभा या यंत्र आदि बनाया जाता है तो उसके सही संचालन के लिए नियम पूर्व ही निर्धारित कर दिये जाते है परमात्मा (God) ने सृष्टि के आरंभ में ही मानव कल्याण के लिए वेदों के माध्यम से इस अद्भुत रचना सृष्टि के सही संचालन व सदुपयोग के लिए दिव्य ज्ञान प्रदान किया। अत: यह कहना गलत है कि वेद केवल आर्यों (हिंदुओं) के लिए है, उन पर जितना हक हिंदुओं का है उतना ही मुस्लिमों का भी है। मानवता का संदेश देने वाले वैदिक धर्म (vedic religion) के अलावा दूसरे अन्य धर्म किसी व्यक्ति विशेष द्वारा चलाये गए। धर्म चलते समय उन्होने अपने को ईश्वर का दूत व ईश्वर पुत्र बताया, ताकि लोग उ