भारत का वीर योद्धा पोरस
#सिकंदर_महान_और_राजा_पोरस : छिपा हुआ सच
पश्चिम मे विश्वविजेता सिकंदर (एलेक्जेंडर) को अत्यंत गर्व के साथ याद किया जाता है जिसने 326 B. C. में भारत के एक राजा पोरस को ‘पराजित’ कर दिया … पश्चिमी म्यूजियमों में इस दृश्य के रंगीन चित्र लगे हैं ।
पर सचाई इसके ठीक विपरीत है …
सच ये है कि 5 फ़ीट 5 इंच की ऊँचाई के इस ‘विश्वविजेता’ को भारत के इस गुमनाम राजा पोरस (पुरुषोत्तम या पर्वतेश्वर) ने , जिसका पश्चिमी ब्यौरों के अलावा कहीं जिक्र भी नहीं है, घुटनों पर ला दिया था …
पुरुवंशी राजा पोरस पंजाब के पौरव प्रान्त पर राज करता था -- 7 फ़ीट 4 इंच की शानदार ऊँचाई -- WWF के विशालकाय ग्रेट खली से भी ऊँचा -- उसकी तक्षशिला के राजा से नहीं बनती थी ।
सिकंदर ये जान गया था और उसने तक्षशिला के राजा को 25 टन सोना रिश्वत में भेंट किया जो उसने पर्शिया में लूटा था , क्योंकि उसने सुना था कि पोरस की सेना में 85 हाथी हैं और उसकी यूनानी सेना का हाथियों से कभी पाला नहीं पड़ा था ।
पर युद्ध के रास्ते में ही सिकंदर की सेना के साथ हादसा हो गया -- उसकी सेना ने विचित्र दृश्य देखे -- कहीं साधु लोग वृक्षों से उल्टे लटके हुए ध्यान कर रहे हैं, कहीं उनके सिर पर काले नाग कुंडलियां मारे बैठे हैं -- ये सब देखकर ही उनके होश उड़ गए और वे युद्ध का हौसला खो बैठे। सिकंदर की सेना को रास्ता दिखा रहे थे तक्षशिला विश्वविद्यालय के प्राध्यापक #चाणक्य के कुछ शिष्य … चाणक्य, जो अब मौर्य सम्राट के मंत्री थे , ने युद्ध से पहले ही मनोवैज्ञानिक युद्ध में उन्हें परास्त कर दिया था …
#सिकंदर_और_पोरस (2)
सिकन्दर ने अपनी पत्नी रोक्साना (एक बैक्ट्रियन सभासद ऑक्सिअर्टस की बेटी) से सुन रखा था कि मगध के नन्दों के पास 6000 हाथी हैं और मौर्य सम्राट #चंद्रगुप्त_मौर्य के पास 9000 हाथी हैं। उनके पास तिब्बती मैस्टिफ कुत्तों के झुण्ड भी थे जो तेंदुओं को भी मार सकते थे और उनके भौंकने की गूंज ऐसी सिहरन पैदा करती थी कि घोड़े और आदमी सबके दिल बैठ जाते थे ।
उसका अपना थेसेलियन काला घोड़ा बुकाफेलस जो युद्धभूमि में मानो उसका ही दूसरा शरीर था एक नर्वस प्राणी था जो मनोवैज्ञानिक चोटें बर्दाश्त नहीं कर पाता था .. पर 10 सालों से बुकाफेलस ने कठिन युद्धों में उसका पूरा साथ दिया था।
वह जानता था कि हाथियों की पीठ पर किलेनुमा हौदे बने रहते हैं जहाँ से तीरंदाज कवच को छेदने वाले सटीक अग्निबाण चलाते हैं । युद्ध से पहले हाथियों को एक घोल पिलाया जाता है जिससे वे तेज दौड़ते हैं, बिल्कुल निर्भय और तुरही नाद से प्रसन्न !
वे लोहे के भारी कीलदार गोले हिलाते हुए बढ़ते थे जो जंजीर से उनकी सूँड में बांधे होते थे और घोड़ों पर घुमा कर मारते थे, घोड़े उन्हें देखते ही और चिंघाड़ सुनते ही भयभीत हो जाते थे।
सिकन्दर ने अपने दस्तावेज में लिखा कि, युद्धभूमि में हाथी पर बैठा विशालकाय और रूपवान पोरस अनुपात की दृष्टि से वैसा ही लगता था जैसा घोड़े पर सवार कोई यूनानी सैनिक !
झेलम के किनारे खूनी लड़ाई में पोरस अपने युवा पुत्र को खो बैठा। सिकंदर ने अपना घोड़ा बुकाफेलस खो दिया जिसका खात्मा पोरस के भाई राजकुमार अमर ने किया। उसने अपने बहादुर यूनानी जनरल नाइसिया को भी गँवा दिया।
#सिकन्दर_और_पोरस (3)
दोनों घायल थे और मानसिक रूप से लड़ने की अवस्था में नहीं थे -- हाँ, एक आक्रमणकारी था जिसकी सारी अकड़ निकल चुकी थी -- और दूसरा था एक धीर रक्षक जो उस लोलुप आक्रमणकारी का सामना करने को पूर्णतः सन्नद्ध था।
सिकन्दर अपना प्रिय घोड़ा खो चुका था जिसपर सवार होकर उसने 10 वर्षों तक सारे युद्ध लड़े थे -- उसकी स्थिति उस हार्ले डेविडसन के सवार जैसी थी जो अब साईकल चलाने में भी असमर्थ था। वह उस प्रचण्ड और गर्वीले योद्धा की प्रतिच्छाया मात्र रह गया था जो वह कभी हुआ करता था -- और उसके सैनिक भी यह परिवर्तन देखकर भौंचक्के थे ।
पोरस को यदि वह हरा भी देता, तो इससे उसे कुछ हासिल होनेवाला नहीं था -- क्योंकि फिर शक्तिशाली नन्द और मौर्य अवश्य उसके पीछे पड़ जाते । और मौर्यों की कमान उस सैनिक कूटनीतिज्ञ, तक्षशिला के प्राध्यापक #चाणक्य ने संभाल रखी थी जो अपनी मानसिक कुशाग्रता के लिये जाना जाता था ।
हतोत्साहित सिकन्दर ने पहले तक्षशिला के राजा आम्भी को सन्धि के लिये भेजा । उस देशद्रोही भारतीय राजा को देखकर पोरस आगबबूला हो उठा और उसकी तरफ भाला फेंका और उसे भगा दिया ।
पोरस अंतिम प्रहार करने के लिये तैयार था ।
अब सिकन्दर के धूर्त्त दिमाग़ ने अपना तुरूप का पत्ता खेला ।
उसने लज्जाजनक ढंग से अपनी पत्नी रोक्साना को भेजा कि वह पोरस को राखी बांधकर उसकी बहन बन जाए -- यानि एक प्राचीन भारतीय परम्परा का फायदा उठाया । अब सिकन्दर को सुरक्षा देना पोरस का उत्तरदायित्व बन गया था -- एक लौहाच्छादित गारण्टी ।
पश्चिमी मष्तिष्क भला इन भारतीय अवधारणाओं को क्या समझेगा ?
#सिकन्दर_और_पोरस (4)
अब सिकन्दर ने अपने दूत को संधि प्रस्ताव लेकर भेजा । यूनान सही सलामत पहुँचने के लिये दूसरा कोई चारा नहीं था।
संधि के बाद, सिकन्दर ने पोरस को उसका राज्य “वापस” कर दिया (जो उसने कभी लिया ही नहीं था) और कुछ अन्य छोटे छोटे राज्य भी दे दिये जो उसने जीते थे -- ये कोई उदारता नहीं थी बल्कि अपनी सुरक्षा के लिये किया था। बेचारा जितना चबा सकता था उससे अधिक मुँह में भर लिया था।
बदले में पोरस ने सिकन्दर को कुछ हाथी दिये, कुछ हिदायतों के साथ कि युद्ध में उनका उपयोग कैसे किया जाय और एक तिब्बती मैस्टिफ भी -- एकमात्र कुत्ता जो दर्द की परवाह नहीं करता। उसने कुछ हीरे भी भेंट किये -- भारत 19 वीं शताब्दी तक हीरों का विश्व में एकमात्र स्रोत था ।
पोरस ने सिकन्दर को एलो वेरा का एक स्टॉक दिया ताकि उसके घाव जल्दी भर जाएँ -- इसके बिना सिकन्दर नहीं बच सकता था ।
विषयांतर : सिकन्दर एक अभ्यस्त होमोसेक्सुअल था, ठीक अपने पिता की तरह। उसने भारत आने से ठीक पहले, गहरे रंग की रोक्साना से शादी क्यों की ? और वो भी अपने टेंट में रहनेवाले खास उभयलिंगी पुरुष-मित्र को नाराज करके ?
सिर्फ तात्कालिक राजनैतिक कारणों से -- तक्षशिला के राजा से महत्वपूर्ण गठजोड़ के लिये। रोक्साना से होनेवाली उसकी संतान को यूनानी कभी उत्तराधिकारी के रूप में स्वीकार नहीं करनेवाले थे ( जैसे हमने सोनिया गांधी को स्वीकार कर लिया है )
वीरगति को प्राप्त उसके विख्यात घोड़े बुकाफेलस के नाम पर एक गाँव का नाम पड़ा है । विशाल हाथियों की चिंघाड़ और तिब्बती मैस्टिफ की इंफ़्रा-ध्वनि को यह घबराया हुआ घोड़ा बर्दाश्त नहीं कर सका ।
यूनानी उस रास्ते से वापस नहीं गए जिस रास्ते से आए थे -- पोरस से मशविरा करके सिकन्दर सिंधु और झेलम नदियों को पार करके गया , ताकि पेड़ों में छिपे हुए जहर बुझे तीरों का फिर से सामना न करना पड़े (जिससे उसकी काफी सेना नष्ट हो गई थी) और हाथियों से सामना न हो ।
कुछ सालों बाद, सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने 9000 हाथियों को (मेगास्थनीज़ के अनुसार) सिकन्दर के क्षत्रप सेल्यूकस निकेटर पर छोड़ दिया और सभी 400000 यूनानियों को सदा के लिये भारत से खदेड़ दिया और हिन्दुकुश (अफ़ग़ानिस्तान) एवं बलूचिस्तान हासिल कर लिये ..
चन्द्रगुप्त ने सेल्यूकस की पुत्री से विवाह भी किया । बदले में सेल्यूकस ने 500 विशाल हाथी प्राप्त किये।
सिकन्दर महान की पोरस ने वाट लगा दी थी .. सिर्फ 85 हाथियों वाले इस मामूली भारतीय राजा ने, जिसे भारतीय दस्तावेजों ने उल्लेख के लायक भी नहीं समझा, यूनानियों को ‘होम सिक’ बना दिया और वे स्वदेश जाने को छटपटाने लगे ।
ये पूर्ण रूप से मिथ्या है कि पोरस ने घुटने टेक दिये और सिकन्दर ने उससे पूछा “तुम्हारे साथ कैसा बर्ताव किया जाय” ?
निरँजनप्रसाद
............वेदिका.
पश्चिम मे विश्वविजेता सिकंदर (एलेक्जेंडर) को अत्यंत गर्व के साथ याद किया जाता है जिसने 326 B. C. में भारत के एक राजा पोरस को ‘पराजित’ कर दिया … पश्चिमी म्यूजियमों में इस दृश्य के रंगीन चित्र लगे हैं ।
पर सचाई इसके ठीक विपरीत है …
सच ये है कि 5 फ़ीट 5 इंच की ऊँचाई के इस ‘विश्वविजेता’ को भारत के इस गुमनाम राजा पोरस (पुरुषोत्तम या पर्वतेश्वर) ने , जिसका पश्चिमी ब्यौरों के अलावा कहीं जिक्र भी नहीं है, घुटनों पर ला दिया था …
पुरुवंशी राजा पोरस पंजाब के पौरव प्रान्त पर राज करता था -- 7 फ़ीट 4 इंच की शानदार ऊँचाई -- WWF के विशालकाय ग्रेट खली से भी ऊँचा -- उसकी तक्षशिला के राजा से नहीं बनती थी ।
सिकंदर ये जान गया था और उसने तक्षशिला के राजा को 25 टन सोना रिश्वत में भेंट किया जो उसने पर्शिया में लूटा था , क्योंकि उसने सुना था कि पोरस की सेना में 85 हाथी हैं और उसकी यूनानी सेना का हाथियों से कभी पाला नहीं पड़ा था ।
पर युद्ध के रास्ते में ही सिकंदर की सेना के साथ हादसा हो गया -- उसकी सेना ने विचित्र दृश्य देखे -- कहीं साधु लोग वृक्षों से उल्टे लटके हुए ध्यान कर रहे हैं, कहीं उनके सिर पर काले नाग कुंडलियां मारे बैठे हैं -- ये सब देखकर ही उनके होश उड़ गए और वे युद्ध का हौसला खो बैठे। सिकंदर की सेना को रास्ता दिखा रहे थे तक्षशिला विश्वविद्यालय के प्राध्यापक #चाणक्य के कुछ शिष्य … चाणक्य, जो अब मौर्य सम्राट के मंत्री थे , ने युद्ध से पहले ही मनोवैज्ञानिक युद्ध में उन्हें परास्त कर दिया था …
#सिकंदर_और_पोरस (2)
सिकन्दर ने अपनी पत्नी रोक्साना (एक बैक्ट्रियन सभासद ऑक्सिअर्टस की बेटी) से सुन रखा था कि मगध के नन्दों के पास 6000 हाथी हैं और मौर्य सम्राट #चंद्रगुप्त_मौर्य के पास 9000 हाथी हैं। उनके पास तिब्बती मैस्टिफ कुत्तों के झुण्ड भी थे जो तेंदुओं को भी मार सकते थे और उनके भौंकने की गूंज ऐसी सिहरन पैदा करती थी कि घोड़े और आदमी सबके दिल बैठ जाते थे ।
उसका अपना थेसेलियन काला घोड़ा बुकाफेलस जो युद्धभूमि में मानो उसका ही दूसरा शरीर था एक नर्वस प्राणी था जो मनोवैज्ञानिक चोटें बर्दाश्त नहीं कर पाता था .. पर 10 सालों से बुकाफेलस ने कठिन युद्धों में उसका पूरा साथ दिया था।
वह जानता था कि हाथियों की पीठ पर किलेनुमा हौदे बने रहते हैं जहाँ से तीरंदाज कवच को छेदने वाले सटीक अग्निबाण चलाते हैं । युद्ध से पहले हाथियों को एक घोल पिलाया जाता है जिससे वे तेज दौड़ते हैं, बिल्कुल निर्भय और तुरही नाद से प्रसन्न !
वे लोहे के भारी कीलदार गोले हिलाते हुए बढ़ते थे जो जंजीर से उनकी सूँड में बांधे होते थे और घोड़ों पर घुमा कर मारते थे, घोड़े उन्हें देखते ही और चिंघाड़ सुनते ही भयभीत हो जाते थे।
सिकन्दर ने अपने दस्तावेज में लिखा कि, युद्धभूमि में हाथी पर बैठा विशालकाय और रूपवान पोरस अनुपात की दृष्टि से वैसा ही लगता था जैसा घोड़े पर सवार कोई यूनानी सैनिक !
झेलम के किनारे खूनी लड़ाई में पोरस अपने युवा पुत्र को खो बैठा। सिकंदर ने अपना घोड़ा बुकाफेलस खो दिया जिसका खात्मा पोरस के भाई राजकुमार अमर ने किया। उसने अपने बहादुर यूनानी जनरल नाइसिया को भी गँवा दिया।
#सिकन्दर_और_पोरस (3)
दोनों घायल थे और मानसिक रूप से लड़ने की अवस्था में नहीं थे -- हाँ, एक आक्रमणकारी था जिसकी सारी अकड़ निकल चुकी थी -- और दूसरा था एक धीर रक्षक जो उस लोलुप आक्रमणकारी का सामना करने को पूर्णतः सन्नद्ध था।
सिकन्दर अपना प्रिय घोड़ा खो चुका था जिसपर सवार होकर उसने 10 वर्षों तक सारे युद्ध लड़े थे -- उसकी स्थिति उस हार्ले डेविडसन के सवार जैसी थी जो अब साईकल चलाने में भी असमर्थ था। वह उस प्रचण्ड और गर्वीले योद्धा की प्रतिच्छाया मात्र रह गया था जो वह कभी हुआ करता था -- और उसके सैनिक भी यह परिवर्तन देखकर भौंचक्के थे ।
पोरस को यदि वह हरा भी देता, तो इससे उसे कुछ हासिल होनेवाला नहीं था -- क्योंकि फिर शक्तिशाली नन्द और मौर्य अवश्य उसके पीछे पड़ जाते । और मौर्यों की कमान उस सैनिक कूटनीतिज्ञ, तक्षशिला के प्राध्यापक #चाणक्य ने संभाल रखी थी जो अपनी मानसिक कुशाग्रता के लिये जाना जाता था ।
हतोत्साहित सिकन्दर ने पहले तक्षशिला के राजा आम्भी को सन्धि के लिये भेजा । उस देशद्रोही भारतीय राजा को देखकर पोरस आगबबूला हो उठा और उसकी तरफ भाला फेंका और उसे भगा दिया ।
पोरस अंतिम प्रहार करने के लिये तैयार था ।
अब सिकन्दर के धूर्त्त दिमाग़ ने अपना तुरूप का पत्ता खेला ।
उसने लज्जाजनक ढंग से अपनी पत्नी रोक्साना को भेजा कि वह पोरस को राखी बांधकर उसकी बहन बन जाए -- यानि एक प्राचीन भारतीय परम्परा का फायदा उठाया । अब सिकन्दर को सुरक्षा देना पोरस का उत्तरदायित्व बन गया था -- एक लौहाच्छादित गारण्टी ।
पश्चिमी मष्तिष्क भला इन भारतीय अवधारणाओं को क्या समझेगा ?
#सिकन्दर_और_पोरस (4)
अब सिकन्दर ने अपने दूत को संधि प्रस्ताव लेकर भेजा । यूनान सही सलामत पहुँचने के लिये दूसरा कोई चारा नहीं था।
संधि के बाद, सिकन्दर ने पोरस को उसका राज्य “वापस” कर दिया (जो उसने कभी लिया ही नहीं था) और कुछ अन्य छोटे छोटे राज्य भी दे दिये जो उसने जीते थे -- ये कोई उदारता नहीं थी बल्कि अपनी सुरक्षा के लिये किया था। बेचारा जितना चबा सकता था उससे अधिक मुँह में भर लिया था।
बदले में पोरस ने सिकन्दर को कुछ हाथी दिये, कुछ हिदायतों के साथ कि युद्ध में उनका उपयोग कैसे किया जाय और एक तिब्बती मैस्टिफ भी -- एकमात्र कुत्ता जो दर्द की परवाह नहीं करता। उसने कुछ हीरे भी भेंट किये -- भारत 19 वीं शताब्दी तक हीरों का विश्व में एकमात्र स्रोत था ।
पोरस ने सिकन्दर को एलो वेरा का एक स्टॉक दिया ताकि उसके घाव जल्दी भर जाएँ -- इसके बिना सिकन्दर नहीं बच सकता था ।
विषयांतर : सिकन्दर एक अभ्यस्त होमोसेक्सुअल था, ठीक अपने पिता की तरह। उसने भारत आने से ठीक पहले, गहरे रंग की रोक्साना से शादी क्यों की ? और वो भी अपने टेंट में रहनेवाले खास उभयलिंगी पुरुष-मित्र को नाराज करके ?
सिर्फ तात्कालिक राजनैतिक कारणों से -- तक्षशिला के राजा से महत्वपूर्ण गठजोड़ के लिये। रोक्साना से होनेवाली उसकी संतान को यूनानी कभी उत्तराधिकारी के रूप में स्वीकार नहीं करनेवाले थे ( जैसे हमने सोनिया गांधी को स्वीकार कर लिया है )
वीरगति को प्राप्त उसके विख्यात घोड़े बुकाफेलस के नाम पर एक गाँव का नाम पड़ा है । विशाल हाथियों की चिंघाड़ और तिब्बती मैस्टिफ की इंफ़्रा-ध्वनि को यह घबराया हुआ घोड़ा बर्दाश्त नहीं कर सका ।
यूनानी उस रास्ते से वापस नहीं गए जिस रास्ते से आए थे -- पोरस से मशविरा करके सिकन्दर सिंधु और झेलम नदियों को पार करके गया , ताकि पेड़ों में छिपे हुए जहर बुझे तीरों का फिर से सामना न करना पड़े (जिससे उसकी काफी सेना नष्ट हो गई थी) और हाथियों से सामना न हो ।
कुछ सालों बाद, सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने 9000 हाथियों को (मेगास्थनीज़ के अनुसार) सिकन्दर के क्षत्रप सेल्यूकस निकेटर पर छोड़ दिया और सभी 400000 यूनानियों को सदा के लिये भारत से खदेड़ दिया और हिन्दुकुश (अफ़ग़ानिस्तान) एवं बलूचिस्तान हासिल कर लिये ..
चन्द्रगुप्त ने सेल्यूकस की पुत्री से विवाह भी किया । बदले में सेल्यूकस ने 500 विशाल हाथी प्राप्त किये।
सिकन्दर महान की पोरस ने वाट लगा दी थी .. सिर्फ 85 हाथियों वाले इस मामूली भारतीय राजा ने, जिसे भारतीय दस्तावेजों ने उल्लेख के लायक भी नहीं समझा, यूनानियों को ‘होम सिक’ बना दिया और वे स्वदेश जाने को छटपटाने लगे ।
ये पूर्ण रूप से मिथ्या है कि पोरस ने घुटने टेक दिये और सिकन्दर ने उससे पूछा “तुम्हारे साथ कैसा बर्ताव किया जाय” ?
निरँजनप्रसाद
............वेदिका.
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