दर्शन

दर्शन क्या है ?

       

        भारतीय मनीषियों के उर्वर मस्तिष्क से जिस कर्म ज्ञान और भक्तिमय त्रिपथगा का प्रवाह उद्भूत हुआ ,उसने दूर-दूर के मानवों के आध्यात्मिक  कल्मस को धोकर उन्हें पवित्र ,शुद्ध-बुद्ध और स्वच्छ बनाकर मानवता के विकास में योगदान दिया है। इसी पतित पावनी धारा को लोग दर्शन के नाम से पुकारते हैं।  अन्वेषकों का विचार है कि इस शब्द का वर्तमान अर्थ में सबसे पहला प्रयोग वैशेषिक दर्शन में हुआ है।
      दर्शन शब्द का अर्थ--  दर्शन शब्द पाणिनीय व्याकरण अनुसार दृशिर् प्रेक्षणे धातु से ल्युट् प्रत्यय करने से निष्पन्न होता है अतः दर्शन शब्द का अर्थ दृष्टि या देखना, 'जिसके द्वारा  देखा जाय' या 'जिसमें देखा जाय 'होगा अर्थात वस्तु का तात्विक स्वरूप जाना जाय । दर्शन शब्द का शब्दार्थ केवल देखना या सामान्य देखना नहीं है। इसीलिए पाणिनि ने  प्रेक्षण शब्द का प्रयोग किया है। प्रकृष्ट ईक्षण के साधन और फल दोनों का नाम दर्शन है। जहां पर इन सिद्धांतों का संकलन हो उन ग्रंथों का भी नाम दर्शन ही होगा जैसे न्याय दर्शन ,मीमांसा दर्शन ,सांख्य दर्शन, योग दर्शन ,वैशेषिक दर्शन आदि - आदि।
     साधक के दो शब्द -वास्तविक अर्थ में दर्शन वह शब्द है जिसके द्वारा संपूर्ण सत्य को जाना गया है ।जिसे पूर्णतया तर्क के आधार पर सिद्ध किया गया है।जहां पर कल्पना का कोई स्थान नहीं ।सिर्फ और सिर्फ तर्क , साधना  एवं  समाधि के आधार पर संपूर्ण सत्य का अन्वेषण करना ही दर्शन है। जिस सत्य को समाधि की स्थिति में डूबकर ऋषियों ने जाना और जानकर जिन ग्रंथों की रचना की, वे ग्रंथ दर्शन ग्रंथ कहलाते हैं । दर्शन ग्रंथ पूर्णतया प्रैक्टिकल ज्ञान है ,प्रायोगिक विज्ञान है ,जो हमारे ऋषियों ने खोजा था।  जब हम दर्शन ग्रंथों को जानेंगे तो हमें एहसास होगा कि कितना महान था ,हमारा सनातन वैदिक धर्म। कितना तर्कपूर्ण एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखते थे, हमारे ऋषि मुनि। किसी भी बात को लकीर के फकीर होकर स्वीकार करना भारतीय अध्यात्म जगत की पहचान नहीं है। पूर्णतया तर्क के आधार पर जिस बात को साबित किया जा सके ।उसी बात को वैदिक सनातन धर्म स्वीकार करता है। आइए हम दर्शन ग्रंथों का ज्ञान ग्रहण करें। भारतीय अध्यात्म जगत का मूल आध्यात्मिक ज्ञान सांख्य दर्शन एवं योग दर्शन में समाया हुआ है क्योंकि सांख्य से बढ़कर कोई ज्ञान नहीं और योग से बढ़कर कोई साधना पद्धति नहीं इसिलिए जिसको सांख्य दर्शन एवं योग दर्शन का ज्ञान है,वही वास्तविक अर्थ में सनातन धर्म को जानता है। इन दोनों दर्शनों के ज्ञान के बिना कोई भी व्यक्ति सनातन धर्म के वास्तविक मर्म को स्पष्ट नहीं कर सकता।
                  

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