भारत का प्राचीन व्यापारिक सँबँध विस्तार
संस्कृति एवं समृद्धि के उन्नायक भारतीय व्यापारी द्वितीय विश्व युद्ध में नष्टप्राय: हुए देश जापान ने व्यापारिक उन्नति के माध्यम से संसार के उन्नत राष्ट्रों की पंक्ति में खड़े होकर यह सिद्ध कर दिया है कि व्यापार से देश में शक्ति आती है और समृद्धि के माध्यम से देश के चर्तुदिक विकास का मार्ग प्रशस्त हो जाता है। प्राचीनकाल में हमारे देश ने अनेक देशों के साथ व्यापारिक संबंध स्थापित किये थे। जो व्यापारी सुदूर देशों की यात्राएं करते थे, वे ही अनेक देश में भारतीय संस्कृति के प्रचारक बन गये। जो मार्ग हमारे व्यापारियों ने अपनाएं, वे ही सांस्कृतिक प्रसार के मार्ग भी बन गये, उन पर विशाल सांस्कृतिक केंद्रों का निर्माण हुआ, वे ही शिक्षा के केंद्र भी बने। जिन देशों के साथ व्यापारिक संबंध थे, वे देश सांस्कृतिक मित्र बन गये और वे भारत को अपना तीर्थ मानने लगे। रेशम के व्यापार के लिए चीन ने जो पथ अपनाया वह कौशेय पथ कहलाया। कुषाणकाल में जब सम्राट कनिष्क का साम्राज्य था तब भारत की प्राचीन लिपि में लिखे गये संस्कृत ग्रंथों के संग्रह भी चीन पहुंचे और वहाँ भारत की सँस्कृति का मिला जुला प्रभाव इसी कारण मिलत