Posts

Showing posts from September, 2018

भारत का प्राचीन व्यापारिक सँबँध विस्तार

संस्कृति एवं समृद्धि के उन्नायक भारतीय व्यापारी द्वितीय विश्व युद्ध में नष्टप्राय: हुए देश जापान ने व्यापारिक उन्नति के माध्यम से संसार के उन्नत राष्ट्रों की पंक्ति में खड़े होकर यह सिद्ध कर दिया है कि व्यापार से देश में शक्ति आती है और समृद्धि के माध्यम से देश के चर्तुदिक विकास का मार्ग प्रशस्त हो जाता है। प्राचीनकाल में हमारे देश ने अनेक देशों के साथ व्यापारिक संबंध स्थापित किये थे। जो व्यापारी सुदूर देशों की यात्राएं करते थे, वे ही अनेक देश में भारतीय संस्कृति के प्रचारक बन गये। जो मार्ग हमारे व्यापारियों ने अपनाएं, वे ही सांस्कृतिक प्रसार के मार्ग भी बन गये, उन पर विशाल सांस्कृतिक केंद्रों का निर्माण हुआ, वे ही शिक्षा के केंद्र भी बने। जिन देशों के साथ व्यापारिक संबंध थे, वे देश सांस्कृतिक मित्र बन गये और वे भारत को अपना तीर्थ मानने लगे। रेशम के व्यापार के लिए चीन ने जो पथ अपनाया वह कौशेय पथ कहलाया। कुषाणकाल में जब सम्राट कनिष्क का साम्राज्य था तब भारत की प्राचीन लिपि में लिखे गये संस्कृत ग्रंथों के संग्रह भी चीन पहुंचे और वहाँ भारत की सँस्कृति का मिला जुला प्रभाव इसी कारण मिलत

भारत ने नाप लिया था भूमि को

कैसे नापी भास्कराचार्य ने पृथ्वी की परिधि ? महाविज्ञानी आर्यभट्ट के ग्रन्थों में भूपरिधि की नाप का विधि का अस्पष्ट निर्देश प्राप्त होता है। 11वीं शताब्दी में भास्कराचार्य ने इसकी विधि का स्पष्ट उल्लेख किया है। इसे ज्ञात करने के लिये प्रमुखत: दो तथ्यों को जानना आवश्यक होता है। प्रथम, किसी निश्चित स्थान B के सापेक्ष किसी अन्य स्थान A पर पृथ्वी का झुकाव। अथवा भूमध्य रेखा के सापेक्ष उसके उत्तर या दक्षिण में किसी स्थान पर पृथ्वी का झुकाव या उसका अक्षांश। इसे प्राचीन ग्रन्थों में सार्थक रूप से अक्षांश नाम दिया गया था। इसका मौलिक अर्थ है, अक्ष यानी पृथ्वी की धुरी या केन्द्रबिन्दु से भूपरिधि के किसी बिन्दु B तक खीची गई रेखा तथा उसी केन्द्रबिन्दु से भूपरिधि के किसी अन्य बिन्दु A तक खींची गई रेखा की परस्पर कोणात्मक दूरी या अंश ही अक्षांश है। द्वितीय तथ्य, उस B स्थान से A स्थान की दूरी। इन दो तथ्यों को जानने के पश्चात् भूपरिधि को जानने के लिये अनुपात—विधि का प्रयोग होता है यदि B के सापेक्ष A स्थान के झुकाव पर B से A की अमुक दूरी हो तो गोल पृथ्वी के 360 अंश झुकाव पर कितनी दूरी होगी। भारतीय ज्

16सँस्कार -भारतीयजीवनपद्धति

-------#वैदिक_साहित्य_और_विज्ञान - ------ -------------------------------------------------------------------- ----------------------- #जीवन_विज्ञान ----------------------- #16_संस्कारो_का_विज्ञान भारत मे प्राचीनकाल से ही जीवन जीने की एक सुव्यवस्थित प्रणाली विद्यमान रही है जिससे हमेशा हमेशा के लिए हमारा शरीर स्वस्थ और मन प्रसन्न रहा करता था। विभिन्न धर्मग्रंथों में संस्कारों के क्रम में थोडा-बहुत अन्तर है, लेकिन प्रचलित संस्कारों के क्रम में गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूड़ाकर्म, कर्णवेध , विद्यारंभ, यज्ञोपवीत, वेदारम्भ, केशान्त, समावर्तन, विवाह तथा अन्त्येष्टि ही मान्य है। गर्भाधान से विद्यारंभ तक के संस्कारों को गर्भ संस्कार भी कहते हैं। इनमें पहले तीन (गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन) को अन्तर्गर्भ संस्कार तथा इसके बाद के छह संस्कारों को बहिर्गर्भ संस्कार कहते हैं। गर्भ संस्कार को दोष मार्जन अथवा शोधक संस्कार भी कहा जाता है। दोष मार्जन संस्कार का तात्पर्य यह है कि शिशु के पूर्व जन्मों से आये धर्म एवं कर्म से सम्बन्धित दोषों तथा गर्भ

भारत का विस्मृत सम्राट विक्रमादित्य

#सोने_की_चिड़िया_वाले_देश_का_असली_राजा_कौन ????? बड़े ही शर्म की बात है कि #महाराज_विक्रमादित्य के बारे में देश को लगभग शून्य बराबर ज्ञान है, जिन्होंने भारत को सोने की चिड़िया बनाया था, और स्वर्णिम काल लाया था । ----------- ★उज्जैन के राजा थे गन्धर्वसैन , जिनके तीन संताने थी , सबसे बड़ी लड़की थी मैनावती , उससे छोटा लड़का भृतहरि और सबसे छोटा वीर विक्रमादित्य...बहन मैनावती की शादी धारानगरी के राजा पदमसैन के साथ कर दी , जिनके एक लड़का हुआ गोपीचन्द , आगे चलकर गोपीचन्द ने श्री ज्वालेन्दर नाथ जी से योग दीक्षा ले ली और तपस्या करने जंगलों में चले गए , फिर मैनावती ने भी श्री गुरू गोरक्ष नाथ जी से योग दीक्षा ले ली । ----------- ★आज ये देश और यहाँ की संस्कृति केवल विक्रमादित्य के कारण अस्तित्व में है अशोक मौर्य ने बोद्ध धर्म अपना लिया था और बोद्ध बनकर 25 साल राज किया था भारत में तब सनातन धर्म लगभग समाप्ति पर आ गया था, देश में बौद्ध और जैन हो गए थे । ---------- ★रामायण, और महाभारत जैसे ग्रन्थ खो गए थे, महाराज विक्रम ने ही पुनः उनकी खोज करवा कर स्थापित किया विष्णु और शिव जी के मंदिर बनवाये

भारत के आराध्य-राम

भारतवर्ष मे राम सर्वोपरि देव है निर्विवाद रूप से।ऐक अद्भुत व्यक्ति,पुत्र,शिष्य, पति,भाई, राजा।हर स्थिति मे श्रेष्ठ,,, मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम। हजारों वर्षों से दिलोदिमाग मे छाया व्यक्तित्व।आश्चर्य है कि इतने वर्षों पूर्व राम जहां भी गए वो सारे स्थान आज भी यथावत अपनी जगह गवाही देते हैं रामायण की। राम राम राम राम हमारी अनँत आस्था के केँद्र युगों युगों से हमारे अपने राम हमे जीवन जीना सिखाने वाले राम जहां भी गए उस स्थान को तीर्थ बना देने वाले राम 14 वर्ष के वनवास में राम कहां-कहां रहे? प्रभु श्रीराम को 14 वर्ष का वनवास हुआ। इस वनवास काल में श्रीराम ने कई ऋषि-मुनियों से शिक्षा और विद्या ग्रहण की, तपस्या की और भारत के आदिवासी, वनवासी और तमाम तरह के भारतीय समाज को संगठित कर उन्हें धर्म के मार्ग पर चलाया। संपूर्ण भारत को उन्होंने एक ही विचारधारा के सूत्र में बांधा, लेकिन इस दौरान उनके साथ कुछ ऐसा भी घटा जिसने उनके जीवन को बदल कर रख दिया। रामायण में उल्लेखित और अनेक अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार जब भगवान राम को वनवास हुआ तब उन्होंने अपनी यात्रा अयोध्या से प्रारंभ करते हुए रामेश्वरम और

मँगल पर जीवन

#भारतीय वैज्ञानिक "#वराह_मिहिर" आज से 1500 साल पहले ही मंगल का पर पानी की खोज कर ली थी  | वर्तमान समय की बात करें तो आज देश दुनिया के विज्ञान को की नजर मंगल ग्रह पर लगी हुई है अमेरिका के नासा भारतीय संस्थान इसरो सहित कई और देशों के विज्ञानिक संस्थान मंगल ग्रह पर पानी और जीवन की संभावना को लगातार खोज रहे हैं लेकिन आज हम आपको ऐसे विज्ञानिक के बारे में बता रहे हैं जिसने आज से 1500 साल पहले ही मंगल का पर पानी की खोज कर ली थी उस भारतीय वैज्ञानिक का नाम था वराह मिहिर ।  उज्जैन के 'कपिथा गाँव'   में 499 ई. में वराह मिहिर का जन्म हुआ था इनके पिता का नाम आदित्य दास था जो कि सूर्य के उपासक थे , मिहिर ने अपने जीवन काल में ज्योतिष और गणित का लंबा अध्यन किया । इनके समय मापक धटंयत्र ने लौह स्तंभ और वेधशाला का निर्माण अपने जीवनकाल में कराया । उन्होंने अपने शोध कार्यों को सिद्धांत के रूप में सूर्य सिद्धांत नामक ग्रंथ में लिखा जो कि अब उपलब्ध नहीं है । सूर्य सिद्धांत नामक ग्रंथ को वराह मिहिर ने 1518 साल पहले लिखा था अपने इस ग्रंथ में उन्होंने मंगल के अर्धव्यास का वर्णन किया था जिस

भारत की अद्भुत नगरी. 'काशी'

एक अद्भुत शहर     'काशी' शिव की नगरी काशी के बारे यह जानकारी बहुत अद्भुत हैं। काशी की प्राचीनता का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि  जब एथेंस को बसाने के बारे में सोचा भी नहीं गया था, उस समय काशी का अस्तित्व था। जब रोम नाम की कोई चीज लोगों के दिमाग में भी नहीं थी, उस वक्त भी काशी था। जब मिस्र नहीं था, काशी तब भी था। काशी, जिसका दूसरा नाम बनारस है, इतना ही प्राचीन है। दरअसल, शहर के रूप में एक यंत्र बनाया गया, जो सूक्ष्म और दीर्घ के बीच एकात्म पैदा करता है। यंत्र का मतलब है एक मशीन या उसके काम करने का तरीका। आज हम जो भी हैं, अपनी मौजूदा स्थिति को बेहतर बनाने के लिए ही हम कोई मशीन बनाते हैं या अब तक हमने इसी मकसद से मशीन बनाए हैं। हमने जो भी बनाया है, वह किसी न किसी रूप में इस धरती से ही बनाया है। जब आप इस धरती से कोई सामग्री लेते हैं, तो एक खास तरह की जड़ता उस मशीन में आ जाती है। जब हम किसी ऐसी चीज के बारे में सोचते हैं जिसे हमेशा या काफी लंबे समय के लिए काम करना है, तो हम एक ऐसा मशीन बनाना चाहते हैं जिसमें जड़ता की गुंजाइश न हो। हम एक ऊर्जा मशीन का निर्माण करने की कोशिश क

भारतीयसँस्कृति की प्राचीनता

आखिर कितने वर्ष पुराना है भारत का सनातन धर्म? क्या है इसका वास्तविक इतिहास           कुछ लोग हिन्दू संस्कृति की शुरुआत को सिंधु घाटी की सभ्यता से जोड़कर देखते हैं। जो गलत है। वास्तव में संस्कृत और कई प्राचीन भाषाओं के इतिहास के तथ्यों के अनुसार प्राचीन भारत में सनातन धर्म के इतिहास की शुरुआत ईसा से लगभग 13 हजार पूर्व हुई थीअर्थात आज से 15 हजार वर्ष पूर्व। इस पर विज्ञान ने भी शोध किया और वह भी इसे सच मानता है। जीवन का विकास भी सर्वप्रथम भारतीय दक्षिण प्रायद्वीप में नर्मदा नदी के तट पर हुआ, जो विश्व की सर्वप्रथम नदी है। यहां पूरे विश्व में डायनासोरों के सबसे प्राचीन अंडे एवं जीवाश्म प्राप्त हुए हैं। संस्कृत भाषा :- संस्कृत विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है तथा समस्त भारतीय भाषाओं की जननी है। ‘संस्कृत’ का शाब्दिक अर्थ है ‘परिपूर्ण भाषा’। संस्कृत से पहले दुनिया छोटी-छोटी, टूटी-फूटी बोलियों में बंटी थी जिनका कोई व्याकरण नहीं था और जिनका कोई भाषा कोष भी नहीं था। भाषा को लिपियों में लिखने का प्रचलन भारत में ही शुरू हुआ। भारत से इसे सुमेरियन, बेबीलोनीयन और यूनानी लोगों ने सीखा। ब्राह्मी

भारत की प्राचीन स्थापत्यकला

भारत का प्राचीन स्थापत्य शास्त्र (CIVIL ENGINEERING AND ARCHITECTURE) प्राचीन भारत मे स्थापत्य शास्त्र की परिधि काफी व्यापक रही है। इसमें नगर रचना, भवन, मन्दिर, मूर्तियां, चित्रकला- सब कुछ आता था। नगरों में सड़कें, जल-प्रदाय व्यवस्था, सार्वजनिक सुविधा हेतु स्नानघर, नालियां, भवन के आकार-प्रकार, उनकी दिशा, माप, भूमि के प्रकार, निर्माण में काम आने वाली वस्तुओं की प्रकृति आदि का विचार किया गया था और यह सब प्रकृति से सुसंगत हो, यह भी देखा जाता था। जल प्रदाय व्यवस्था में बांध, कुआं, बावड़ी, नहरें, नदी आदि का भी विचार होता था। किसी भी प्रकार के निर्माण हेतु शिल्प शास्त्रों में विस्तार से विचार किया गया है। हजारों वर्ष पूर्व वे कितनी बारीकी से विचार करते थे, इसका भी ज्ञान होता है। शिल्प कार्य के लिए मिट्टी, एंटें, चूना, पत्थर, लकड़ी, धातु तथा रत्नों का उपयोग किया जाता था। इनका प्रयोग करते समय कहा जाता था कि इनमें से प्रत्येक वस्तु का ठीक से परीक्षण कर उनका निर्माण में आवश्यकतानुसार प्रयोग करना चाहिए। परीक्षण हेतु वह माप कितने वैज्ञानिक थे, इसकी कल्पना हमें निम्न उद्धरण से आ सकती है- महर्षि

गाना गाने वाले मँदिर के खँभे

भारत मे ऐसे कई मँदिर है जिनके पत्थरों से बने खँभे भी सँगीत गाते हैं।    कर्नाटक मे बेल्लारी जिले मे स्थित हम्पी एक अत्यंत प्राचीन भारतीयसभ्यता का अजस्र नमूना है जो समृद्धि की कहानियों को स्वयं के खँडहरो मे भी व्याप्त वैभव के माध्यम से बयान करता आ रहा है।तुँगभद्रा नदी के तट पर स्थित ये नगर अतीत मे दक्षिण के प्रभावशाली क्षेत्र विजयनगर साम्राज्य के नाम से विख्यात था हालांकि इसमें और भी कुछ नगर थे और ये इस साम्राज्य की राजधानी थी।लगभग तेरहवीं शताब्दी मे ये नगर अपनी समृद्धि के परवान था इसकी स्थापना हरिहर और बुक्का नाम के दो प्रतापी भाईयों ने की थी तथा इनमें सबसे अधिक लोकप्रिय होने वाले राजा कृष्णदेवराय थे जिनकी कहानियां तेनालीराम से जोडकर कही जाती है।यहां राजाओं को अनाज,सोने और रूपयो से तौला जाता था और उसे गरीब लोगों मे बाँट दिया जाता था। खँडहरो मे तब्दील हो चुका ये नगर आज भी अपनी अप्रतिम सुँदरता के लिए यूनेस्को की विश्व धरोहर मे शामिल है। यहां महल की रानियों लिए बडे मेहराबदार गलियारों, झरोखेदार गलियारों, झरोखेदार छज्जों और कमल के आकार के फव्वारों से सुसज्जित है।इसके अलावा कमलमहल और जनाना

नासिका के स्वर विज्ञान का महत्व

::::::::::::::::::स्वर विज्ञान :::::::::::::::::::  ===========================  पृथ्वी पर पाए जाने वाले लगभग सभी जीवमात्र ,यहाँ तक की वनस्पति के लिए जीवन का आधार नाक से ली जाने वाली प्राणवायु है |सभी जीव विभिन्न प्रकार से इस जीवनदायी वायु को ग्रहण करते हैं ,इसी से उनमे जीवन की समस्त क्रियाओ और ऊर्जा उत्पादन होता है ,,इसका ग्रहण करना बंद होने पर जीव मृत हो जाता है |जल बिना तो जीवन कुछ दिनों तक संभव है किन्तु श्वांस बिना मिनटों भी संभव नहीं है |वायु को जीवमात्र द्वारा नासिका द्वारा ग्रहण किया जाता है |इसके ग्रहण करने की प्रकृति का बहुत बड़ा महत्व है |किस प्रकार किस ओर से वायु ग्रहण हो रही है इसका जीव पर गंभीर प्रभाव पड़ता है |विशिष्ट प्रकार से ग्रहण ही प्राणायाम का आधार है ,कुंडलिनी की ऊर्जा का स्रोत है |योग में इसे मूर्धन्य स्थान प्राप्त है |इसकी इन सब विशेषताओं को जानना ही स्वर विज्ञान है | स्वर विज्ञान को जानने वाला कभी भी विपरीत परिस्थितियों में नहीं फँसता और फँस भी जाए तो आसानी से विपरीत परिस्थितियों को अपने अनुकूल बनाकर बाहर निकल जाता है। स्वर विज्ञान एक बहुत ही आसान विद्या है। इ

भारत का वीर योद्धा पोरस

#सिकंदर_महान_और_राजा_पोरस : छिपा हुआ सच पश्चिम मे विश्वविजेता सिकंदर (एलेक्जेंडर) को अत्यंत गर्व के साथ याद किया जाता है  जिसने 326 B. C. में भारत के एक राजा पोरस को ‘पराजित’ कर दिया … पश्चिमी म्यूजियमों में इस दृश्य के रंगीन चित्र लगे हैं । पर सचाई इसके ठीक विपरीत है … सच ये है कि 5 फ़ीट 5 इंच की ऊँचाई के इस ‘विश्वविजेता’ को भारत के इस गुमनाम राजा पोरस (पुरुषोत्तम या पर्वतेश्वर) ने , जिसका पश्चिमी ब्यौरों के अलावा कहीं जिक्र भी नहीं है, घुटनों पर ला दिया था … पुरुवंशी राजा पोरस पंजाब के पौरव प्रान्त पर राज करता था -- 7 फ़ीट 4 इंच की शानदार ऊँचाई -- WWF के विशालकाय ग्रेट खली से भी ऊँचा -- उसकी तक्षशिला के राजा से नहीं बनती थी । सिकंदर ये जान गया था और उसने तक्षशिला के राजा को 25 टन सोना रिश्वत में भेंट किया जो उसने पर्शिया में लूटा था , क्योंकि उसने सुना था कि पोरस की सेना में 85 हाथी हैं और उसकी यूनानी सेना का हाथियों से कभी पाला नहीं पड़ा था । पर युद्ध के रास्ते में ही सिकंदर की सेना के साथ हादसा हो गया -- उसकी सेना ने विचित्र दृश्य देखे -- कहीं साधु लोग वृक्षों से उल्टे लट