पँचतत्व रहस्य
पंच-तत्व का शरीर क्या है और ये कैसे काम करते है।
आज बात करते है शरीर के पंच तत्वों की जिनसे ये शरीर बना है। ये पंच तत्व ही भौतिक और अभौतिक रूप में शरीर का गि निर्माण करते है। कम ही लोगों को पता हो कि ये पंच तत्व क्या है और शरीर कैसे काम करते है। आज इन्ही तत्वों को समझेगे। ये पंच तत्व है क्रम अनुसार 1. पृथ्वी, 2. जल, 3. अग्नि, 4. वायु, 5. आकाश।
1. पृथ्वी तत्व- ये वो तत्व है जिससे हमारा भौतिक शरीर बनता है। जिन तत्त्वों, धातुओं और अधातुओं से पृथ्वी (धरती) बनी उन्ही से हमारे भौतिक शरीर की भी सरंचना हुई है। यही कारण है कि हमारे शरीर लौह धातु खून में, कैल्शियम हड्डियों में, कार्बन फाइबर रूप में, नाइट्रोजन प्रोटीनरि रूप में और भी कितने ही तत्व है जो शरीर में पाए जाते है। और यही कारण है कि आयुर्वेद में शरीर की निरोग और बलशाली बनाने के लिए धातु की भस्मो का प्रयोग किया जाता है।
2. जल तत्व- जल तत्व से मतलब है तरलता से। जितने भी तरल तत्व जो शरीर में बह रहे है वो सब जल तत्व ही है। चाहे वो पानी हो, खून हो, वसा हो, शरीर मे बनने वाले सभी तरह के रा रस और एंजाइम। वो सभी जल तत्व ही है। जो शरीर की ऊर्जा और पोषण तत्वों को पूरे शरीर मे पहुचाते है। इसे आयुर्वेद में कफ के नाम से जाना जाता हैं। इस जल तत्व की मात्रा में संतुलन बिगड़ते ही शरीर भी बिगड़ कर बीमार बना देगा।
3.अग्नि तत्व- अग्नि तत्व ऊर्जा, ऊष्मा, शक्ति और ताप का प्रतीक है। हमारे शरीर में जितनी भी गर्माहट है वो सब अग्नि तत्व ही है। यही अग्नि तत्व भोजन को पचाकर शरीर को निरोग रखता है। ये तत्व ही शरीर को बल और शक्ति वरदान करता है। इसे आयुर्वेद में पित्त के नाम से ज जाना जाता है। इस तत्व की ऊष्मा का भी एक स्तर होता है, उससे ऊपर या नीचे जाने से शरीर भी बीमार हो जाता है।
4. वायु तत्व- जितना भी प्राण है वो सब वायु तत्व है। जो हम सांस के रूप में हवा (ऑक्सीजन) लेते है, जिससे हमारा होना निश्चित है, जिससे हमारा जीवन है। वही वायु तत्व है। पतंजलि योग में जितने भी प्राण व उपप्राण बताये गए है वो सब वायु तत्व के कारण ही काम कर रहे है। इसको आयुर्वेद में वात के नाम से जानते है। इसका भी सन्तुलन बिगड़ने से शरीर का संतुलन बिगड़ कर शरीर बीमार पड़ जाता है।
5. आकाश तत्व- ये तत्व ऐसा जिसके बारे में कुछ साधक ही बता सकते है कि ये तत्व शरीर मे कैसे विद्यमान है और क्या काम करता है। ये आकाश तत्व अभौतिक रूप में मन है। जैसे आकाश अनन्त है वैसे ही मन की भी कोई सीमा नही है। जैसे आकाश आश्चर्यों से भरा पड़ा है वैसे ही मन के आश्चर्यो की कोई सीमा नही है। जैसे आकाश अनन्त ऊर्जाओं से भरा है वैसे ही मन की शक्ति की कोई सीमा नही है जो दबी या सोई हुई है। जैसे आकाश में कभी बादल, कभी धूल और कभी बिल्कुल साफ होता है वैसे ही मन में भी कभी ख़ुशी, कभी दुख और कभी तो बिल्कुल शांत रहता है। ये मन आकाश तत्व रूप है जो शरीर मे विद्यमान है।
इन पंच तत्व से ऊपर एक तत्व है जो आत्मा (ॐ) है। जिसके होने से ही ये तत्व अपना काम करते है,बाकी सारे शारीरीक अँग स्थूल शरीर मे आते है जो इन पँचतत्व और आत्मा के सँयोग से क्रियमाण हैं,बिना इनके ये शरीर मृत हो जाता है।
आज बात करते है शरीर के पंच तत्वों की जिनसे ये शरीर बना है। ये पंच तत्व ही भौतिक और अभौतिक रूप में शरीर का गि निर्माण करते है। कम ही लोगों को पता हो कि ये पंच तत्व क्या है और शरीर कैसे काम करते है। आज इन्ही तत्वों को समझेगे। ये पंच तत्व है क्रम अनुसार 1. पृथ्वी, 2. जल, 3. अग्नि, 4. वायु, 5. आकाश।
1. पृथ्वी तत्व- ये वो तत्व है जिससे हमारा भौतिक शरीर बनता है। जिन तत्त्वों, धातुओं और अधातुओं से पृथ्वी (धरती) बनी उन्ही से हमारे भौतिक शरीर की भी सरंचना हुई है। यही कारण है कि हमारे शरीर लौह धातु खून में, कैल्शियम हड्डियों में, कार्बन फाइबर रूप में, नाइट्रोजन प्रोटीनरि रूप में और भी कितने ही तत्व है जो शरीर में पाए जाते है। और यही कारण है कि आयुर्वेद में शरीर की निरोग और बलशाली बनाने के लिए धातु की भस्मो का प्रयोग किया जाता है।
2. जल तत्व- जल तत्व से मतलब है तरलता से। जितने भी तरल तत्व जो शरीर में बह रहे है वो सब जल तत्व ही है। चाहे वो पानी हो, खून हो, वसा हो, शरीर मे बनने वाले सभी तरह के रा रस और एंजाइम। वो सभी जल तत्व ही है। जो शरीर की ऊर्जा और पोषण तत्वों को पूरे शरीर मे पहुचाते है। इसे आयुर्वेद में कफ के नाम से जाना जाता हैं। इस जल तत्व की मात्रा में संतुलन बिगड़ते ही शरीर भी बिगड़ कर बीमार बना देगा।
3.अग्नि तत्व- अग्नि तत्व ऊर्जा, ऊष्मा, शक्ति और ताप का प्रतीक है। हमारे शरीर में जितनी भी गर्माहट है वो सब अग्नि तत्व ही है। यही अग्नि तत्व भोजन को पचाकर शरीर को निरोग रखता है। ये तत्व ही शरीर को बल और शक्ति वरदान करता है। इसे आयुर्वेद में पित्त के नाम से ज जाना जाता है। इस तत्व की ऊष्मा का भी एक स्तर होता है, उससे ऊपर या नीचे जाने से शरीर भी बीमार हो जाता है।
4. वायु तत्व- जितना भी प्राण है वो सब वायु तत्व है। जो हम सांस के रूप में हवा (ऑक्सीजन) लेते है, जिससे हमारा होना निश्चित है, जिससे हमारा जीवन है। वही वायु तत्व है। पतंजलि योग में जितने भी प्राण व उपप्राण बताये गए है वो सब वायु तत्व के कारण ही काम कर रहे है। इसको आयुर्वेद में वात के नाम से जानते है। इसका भी सन्तुलन बिगड़ने से शरीर का संतुलन बिगड़ कर शरीर बीमार पड़ जाता है।
5. आकाश तत्व- ये तत्व ऐसा जिसके बारे में कुछ साधक ही बता सकते है कि ये तत्व शरीर मे कैसे विद्यमान है और क्या काम करता है। ये आकाश तत्व अभौतिक रूप में मन है। जैसे आकाश अनन्त है वैसे ही मन की भी कोई सीमा नही है। जैसे आकाश आश्चर्यों से भरा पड़ा है वैसे ही मन के आश्चर्यो की कोई सीमा नही है। जैसे आकाश अनन्त ऊर्जाओं से भरा है वैसे ही मन की शक्ति की कोई सीमा नही है जो दबी या सोई हुई है। जैसे आकाश में कभी बादल, कभी धूल और कभी बिल्कुल साफ होता है वैसे ही मन में भी कभी ख़ुशी, कभी दुख और कभी तो बिल्कुल शांत रहता है। ये मन आकाश तत्व रूप है जो शरीर मे विद्यमान है।
इन पंच तत्व से ऊपर एक तत्व है जो आत्मा (ॐ) है। जिसके होने से ही ये तत्व अपना काम करते है,बाकी सारे शारीरीक अँग स्थूल शरीर मे आते है जो इन पँचतत्व और आत्मा के सँयोग से क्रियमाण हैं,बिना इनके ये शरीर मृत हो जाता है।
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