आध्यात्मिक शिखर=सुमेरु



सुमेरु पर्वत
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आज इतिहासकर महोदय को बताया जाए कि किसी भी पौराणिक तथ्य की वैज्ञानिक अन्वेषणा कैसे की जाती है।

"सत्य कड़वा होता है।" - ये कहा था बुजुर्गों ने। किन्तु वर्तमान में इस पङ्क्ति का प्रयोग कुछ यूँ हो रहा है : "जो कड़वा, वही सत्य।"

बीते सप्ताह से देख रहा हूँ, "विज्ञान" के नाम पर कुछ भी लिखा जा रहा। इस बात को यूँ भी कहूँ, कि ऐसा माना जा रहा है : "जो तर्क सनातन धर्म शास्त्र की बात को काट दे, वही विज्ञान है।"

तो अब विज्ञान की परिभाषा धर्म पर आधारित रहेगी?

इतिहासकार महोदय द्वार उछाली गयी एक पङ्क्ति यत्र तत्र बिखरी हुई है : "सुमेरु पर्वत की ऊंचाई चौरासी हज़ार योजन है। अर्थात् सत्तावन लाख किमी। ये कैसे संभव है, सनातनधर्मध्वजाधारियो।"

इस पङ्क्ति और साथ में की जाने वाली टिप्पणियों से स्पष्ट था कि पङ्क्ति लिखने से पूर्व ही इतिहासकार महोदय ने अपनी विजय मान ली है।

ये कोई छोटा सा विषय नहीं है, बल्कि इसमें कई परतें हैं। आज, हम इस विमर्श पर आ पहुंचे हैं। आइये, "सुमेरु" पर्वत की ऊंचाई और इसमें छिपे गूढ़ रहस्य का वैज्ञानिक व तार्किक अन्वेषण करें।

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विषय है : "सुमेरु" पर्वत।

अव्वल तो यही कि ये शब्द कहाँ से आया?

ये शब्द आया है "मेरु पर्वत" शब्दबंध से। इसी पर्वत को आकार के कारण "महामेरु" कहा गया।

"मेरु" का पृथक् प्रयोजनमूलक अर्थ होता है : "नियत स्थान।"

ये "वर्त" से छोटे क्षेत्रों में प्रयोग किये जाने वाला शब्द है। यथा : आर्यों का "आर्यावर्त", राक्षसों का "राक्षसावर्त" आदि। वैसे ही छोटे छोटे नियत स्थानों के लिए "मेरु" प्रयोग किया जाता है।

वर्तमान समय में इसका सटीक उदाहरण "अजय मेरु", "जयसलिल मेरु" एवं "बृहद मेरु" हैं। क्रमशः इनके आधुनिक नाम है : "अजमेर", "जैसलमेर" एवं "बाड़मेर"।

वैसे ही, "मेरु" पर्वत पर देव अर्थात "सुरों" ने अपना आधिपत्य किया। और वो स्थान बना : "सुरमेरु"। कालांतर में इसे "सुमेरु" और तद्भव भाषा में "सुरमेर" और "सुमेर" उचारा गया है।

वर्तमान में "सुमेरु" पर्वत का स्थान तिब्बत में "मानसरोवर" के आसपास ही मानिए, थोड़ा सा उत्तर दिशा में। इसके उत्तर में "रम्यकवर्ष" (रूस) और दक्षिण में "भारतवर्ष" यथावत स्थित हैं।

इस पर्वत का उल्लेख महाभारत और पुराणों में बहुधा प्राप्त होता है।

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अब एक बेहद सहज प्रश्न है : "सुमेरु" पर्वत पृथ्वी की नाभि पर स्थित है। कैसे?

इसके लिए सर्वप्रथम "नाभि" को समझना होगा। "नाभि" क्या है?

किसी भी वस्तु की "नाभि" उसका "सेंटर ऑफ ग्रेविटी" होता है। ऐसा बिंदु जहाँ से उस वस्तु प्रत्येक बिंदु पर समान बल आरोपित किया जा सके। और हर तरफ समान भार हो।

मनुष्य ने हर कल्पना स्वयं अपनी देह से की है। देह का "सेंटर ऑफ ग्रेविटी" उसका "नाभिक्षेत्र" होता है। मनुष्य यदि दूसरे मनुष्य को ऊपर उठाना चाहे तो एक हाथ अवश्य ही "नाभि" के निकट रखकर बल लगाना होगा।

तिस ओर ही मनुष्य ने "सेंटर ऑफ ग्रेविटी" को "नाभि" अभिहित किया है।

ये तो थी एक असमान आकृति की देह की बात। पृथ्वी की बात करें तो "नाभि" क्षेत्र क्या होगा? एक ठोस गोले का नाभि क्षेत्र उसका केंद्र होता। यदि केंद्र तक न पहुँच सकें और सतह पर ही "नाभि" खोजनी हो तो सहत का प्रत्येक बिंदु नाभि क्षेत्र की भांति व्यवहार करता है।

इसकी तुलना "हैमर थ्रो" में प्रयुक्त किये जाने वाले लोहे के गोले और जंजीर के जुड़ाव से कीजिये। गोले की सतह का प्रत्येक बिंदु "नाभि" की भांति कार्य करता है, जंजीर को कहीं भी लगा दीजिये।

अतः ये सबसे बड़ा संभ्रम है कि कोई एक ही बिंदु पृथ्वी का "नाभिक्षेत्र" है।

"नैमिषारण्य" को पृथ्वी का "नाभि-गयाक्षेत्रे" कहा गया है।
कहीं कहीं महाकाल की नगरी "उज्जैन" को "नाभि" माना गया है।
एक रोज़ किसी उत्साही वैज्ञानिक के शोधपत्र में, मैंने "श्रीहरिकोटा" को भी "नाभि" लिखा हुआ पढ़ा।
"बनारस" को भी कहीं कहीं "नाभि" अभिहित किया1 हुआ है।

और खोजने पर सैकड़ों उदाहरण मिल जाएंगे। पृथ्वी की सतह का प्रत्यके बिंदु ही नाभि क्षेत्र है।

आइये, अब "सुमेरु" पर्वत के विवरण में छिपे गूढ़ रहस्यों की ओर चलें।

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क्या आप जानते हैं, ज्ञान के दो रूप होते हैं : "सांद्रित" और "तनु"। [ सांद्रित : कॉन्सेन्ट्रटेड एवं तनु : डाइल्यूटेड ]

वेदों का ज्ञान "सांद्रित" है। पुराणों, रामायण व् महाभारत का ज्ञान "तनु" है।

कैसे?

मेरे शब्दों की दुनिया के दोस्तो, जीवन में कभी न कभी सबका स्वास्थ्य खराब होता है। दवाएं सभी ने ली होंगी। कभी कभी चिकित्सक एक छोटे से आकार की डिबिया में तरल पदार्थ भर कर देता है। और कहता है, इसे एक ग्लास जल में दो बूँद मिला कर लीजियेगा।

ठीक वैसे ही जानिये।

छोटी डिबिया की "सांद्रित" दवा "वेद" हैं और दो बूँद मिलकर एक ग्लास "तनु" दवा जो निर्मित हुयी, वो "पुराणादिक" हैं।

पुराण स्वयं कहते हैं : "वेद समुद्र हैं, पुराण बादल हैं। इन सब बादलों ने, मनुष्यों के चिंतन और लेखन परिश्रम की गर्मी से वाष्पित हुआ, इन्हीं समुद्रों का जल स्वयं में भरा है।"

पुराणों की निर्मिति ही इस हेतु से की गयी है कि जिन लोगों को "सांद्रित" ज्ञान का बोध न हो सके, वे सरल और रोचक कथानकों के माध्यम से सीख प्राप्त करें।

अब यदि, स्वयं को "सांद्रित" स्तर का समझने वाला व्यक्ति, "तनु" स्तर के ज्ञान की अन्वेषणा में अपना बालपन प्रदर्शित करे। तो क्या कीजियेगा?

"सुमेरु" पर्वत का ज्ञान "तनु" स्तर का है। और इतिहासकार महोदय अपनी उनचास वर्ष की अवस्था में भी ये नहीं समझ पाए हैं, तो इसमें किसका दोष? सनातन का? या शास्त्रों का?

धर्म का ज्ञान बहुधा गूढ़ होता है, "सांद्रित" होता है। किंतु विज्ञान हर बात को व्याख्यायित करता है, "तनु" होता है उसका ज्ञान।

आइये, अब इसी आधार पर "सुमेरु" पर्वत के विवरण में छिपे गूढ़ रहस्यों को खोलें।

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"सुमेरु" पर्वत चौरासी हज़ार योजन ऊंचा है।

इसका अर्थ ये नहीं कि वाकई में चौरासी हज़ार योजन है। बल्कि इसका अर्थ है : "टेंड्स टू इन्फिनिटी"। अर्थात् अनन्त के करीब।

कैसे?

अक्सर आपने देखा होगा, हमारे शास्त्रों में अनगिनत को अस्सी से नब्बे तक की संख्या दी गयी है। यथा :

अट्ठासी हज़ार ऋषियों ने पुराने सुनीं।
शिव की समाधि अट्ठासी हज़ार वर्षों तक चली।
कुल योनियां चौरासी लाख हैं।
महाराज युधिष्ठिर प्रतिदिन अट्ठासी हज़ार ऋषियों को भोजन करवाते थे।

आदि आदि। अभी लिखने बैठूँ तो कभी ख़त्म न हो सूची।

"सुमेरु" रात्रि में सुनहला चमकता है। क्यों?

उसका कारण है, सुमेरु के दक्षिण में असुरों (रात्रिचरों) का स्थान होना। वे लोग रात्रि में अग्नि प्रज्ज्वलित कर, नृत्य आदिक उत्सव करते थे। आखेट करते थे। उत्तर में निवास करने वालो लोगों को ये अग्नि सुनहली चमक जैसी दिखाई देती थी।

"सुमेरु" के गगन को छूने का भी यही कारण है। ये अग्नि लपटें आकाश को स्पर्श करती दिखाई देती थीं। और भू विज्ञान कहता है कि यही कोई बाधा न हो तो साठ किमी दूर के बिंदु पर आकाश और पृथ्वी एक दूसरे से स्पर्श होते प्रतीत होते हैं।

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तो जनाब इतिहासकार श्री, इसे बारंबार पढिये। और मुझे पूरी आशा है कि जल्द ही आप भी वैज्ञानिक विश्लेषण करने में सिद्धहस्त-पारंगत हो जाएंगे। कहीं कोई प्रश्न मन में हो तो पूछ लीजियेगा। स्वयं आने में शर्मिंदा हों तो किसी अन्य से करवा लीजियेगा।

इस मुआमले में योगी अनुराग वास्तविक योद्धा है, कभी प्रश्न से पीठ नहीं दिखाता!


Comments

  1. भाई आपका लेख पढ़कर अपार प्रसन्नता हुई क्या सुमेरु पर्वत या अन्य कुछ आध्यात्मिक जानकारियां आप से प्राप्त कर सकते हैं अगर आप कुछ बता सकते हैं तो romahemvani@gmail.com पर संपर्क करें
    अति कृपा होगी धन्यवाद

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