प्याज लहसुन क्यों नहीं खाते साधक




आप जानते हैं प्याज और लहसुन क्यों नहीं खाते हैं ब्राह्मण?आपको हैरान कर देगी इसके पीछे की कहानी

हम आपको बताएंगे आध्यात्मिक  और वैज्ञानिक कारण। सबसे पहले आध्यात्मिक कारणों की बात की जाए तो पुराणों में ऐसा कहा गया है कि समुंद्र मंथन के दौरान जब समुंद्र से अमृत के कलश को निकाला गया तो देवताओं को अमरत्व प्रदान करने के उद्देश्य से भगवान विष्णु उन सभी में अमृत बांट रहे थे। उस समय राहु और केतु नाम के दो राक्षस अमर होने के लिए देवताओं के बीच में आकर बैठ गए। भगवान विष्णु ने गलती से राहु और केतु को भी अमृत पिला दिया। हालांकि, भगवान विष्णु को जैसे ही इस बात की भनक लगी उन्होंने बिना देर किए अपना सुदर्शन चक्र घुमाया और राक्षसों के सिर धड़ से अलग कर दिया। लेकिन  तब तक काफी देर हो चुकी थी। अमृत की कुछ बूंदें इनके मुंह में चली गई थी। इस वजह से उन दोनों का सिर तो अमर हो गया, लेकिन धड़ नष्ट हो गया।
इस दोनों पर विष्णु जी ने जब प्र’हार किया तो खू’न की कुछ बूंदे जमीन पर गिर गईं थीं। पुराणों में कहा गया है कि जमीन पर गिरे उन्हीं खू’न से प्याज और लहसुन की उत्पत्ति हुई।  यही कारण है कि हम जब भी प्याज और लहसुन खाते हैं तो मुंह से एक अजीब तरह की गंध आती है।  कहते हैं कि राक्षसों के खू’न से प्याज और लहसुन की उत्पत्ति  चूंकि राक्षसों के खून से प्याज और लहसून की उत्पत्ति हुई तो इसलिए ब्राह्मण इसे नहीं खाते हैं।
हालांकि वैज्ञानिक कारण इससे बिल्कुल अलग है। आयुर्वेद में खाद्य पदार्थों को तीन श्रेणियों में बांटा गया है – सात्विक, राजसिक और तामसिक। सात्विक: शांति, संयम, पवित्रता और मन की शांति जैसे गुण….राजसिक: जुनून और खुशी जैसे गुण…तामसिक: क्रोध, जुनून, अहंकार और विनाश जैसे गुण…. प्याज और लहसुन तामसिक की श्रेणी में आते हैं। ऐसा माना जाता है कि इन्हें ज्यादा नहीं खाना चाहिए क्योंकि इससे व्यक्ति के व्यवहार में बदलाव आ जाता है। इससे इंसान कुछ हद तक हिं’सक प्र’कृति के हो जाते हैं। संयम का अभाव हो जाता है, क्रो’ध की मात्रा बढ़ जाती है और शरीर गर्म हो जाता है।

                            निरँजनप्रसाद पारीक
                                   वेदिका



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