अर्जुन का धनुष



गांडीव धनुष
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"यजुर्वेद" में यज्ञ का क्या महत्त्व है? वही महत्त्व है "युद्ध" का "धनुर्वेद" में।

"यज्ञ" में आहुति, मानो "युद्ध" में बाण। आहुति देने वाले यंत्र को "श्रुवा" कहा गया है। और "युद्धयज्ञ" में "बाणों" की आहुति देने वाले यंत्र को "धनुष"!

अतएव, "धनुष" ही क्षत्रियों का "श्रुवा" है।

सृष्टि के इतिहास में, तीन धनुष सर्वश्रेष्ठ माने गए हैं। वे हैं : "पिनाक", "शार्ङ्ग" और "गांडीव"।

"पिनाक" और "शार्ङ्ग" क्रमशः शिव और विष्णु के धनुष हैं। इनके विषय में फिर कभी। फिलहाल, "गांडीव" पर बात हो!

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"गांडीव" शब्द "गड्" धातु से बना है।

इस शब्द की रूप सिद्धि अत्यंत जटिल है। शायद अब तक मेरे द्वारा पोस्ट की गयी सभी सिद्धियों में, सर्वाधिक जटिल!

धातु "गड्" का अर्थ है, "रस का कोश"। "गण्ड" या "गाँठों" वाली फसल को "गन्ना" कहा गया, चूँकि वे रसयुक्त गाँठें हैं।

"गड्" से ही शब्द "गुड़" बना है। जो "रस"से बनता है।

ग्रीवा में गाँठें होकर विकसित होने वाले रोग का नाम है "गलगण्ड", जिसे सुश्रुत और चरक ने "ग्रीवागण्डि" पुकारा है।

एक ऐसा पशु है, जिसकी पूरी देह पर गाँठें होती हैं। और मुख पर भी एक विशाल गाँठ उभरी होती है।

इसलिए उसे "गैंडा" पुकारा गया है।

"गैंडे" के मेरुदंड से बने धनुष को कहते हैं "गांडीव"!

इस धनुष को महर्षि "नर" ने धारण किया था।

वही नर-नारायण, जिन्होंने उत्तराखण्ड में एक सहस्र कवचों वाले "सहस्रकवीच" को नौ सौ निन्यानवे बार पराजित किया, और जम्बू द्वीप के अधिष्ठात्र कहलाये।

वही "नर" हैं, "गांडीव" के वास्तविक हकदार। जब वे "अर्जुन" के रूप में पुनः प्रकट हुए, तो धनुष भी उन्हें प्राप्त हुआ।

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"गांडीव" के गुणों की बात करें तो दो ये दो रूपों में प्रयुक्त किया जाने वाला यन्त्र था। एक प्रयोग मनुष्यचालित था, और दूसरा प्रयोग स्वचालित।

मनुष्यचालित प्रयोग में, एक दशमलव तीन मीटर के एक "मेरुदंड" के दोनों कोनों को एक "पाश" से बाँध दिया गया था।

ये "पाश" मुर्वा-मूँज घास में वृक्ष की छाल और मृत जीवों के स्नायुतंतुओं को वृक्षों से निकले गोंद में अर्क में मींज कर बनाया जाता था।

"धनुष" दंड के मध्य को, चिन्हित कर एक खांचा निर्मित कर दिया गया था, ताकि "बाण" को स्थित किया जा सके।

सामान्य युद्धों में "गांडीव" का ये प्रयोग अर्जुन करते थे।

इस प्रकार चलाये गये "बाण" सुपर-सोनिक नहीं होते। दो मील का लक्ष्य भेदने में पर्याप्त समय लेते हैं। सम्मुख खड़े योद्धा को बाण का प्रत्युत्तर देने का भरपूर अवसर मिलता है।

किन्तु, जहाँ सम्मुख खड़ा योद्धा अत्यंत बलवान हो, और बिना दिव्यास्त्रों के प्रयोग के उसे पराजित न किया जा सके। तब अर्जुन इस धनुष को "एज़ अ मिसाइल लॉन्चिंग पैड" प्रयोग करते थे।

अर्थात् "प्रक्षेपास्त्र" दागने का आधार!

और तब "गांडीव" से जाने वाले बाण सुपर-सोनिक हुआ करते थे। आज के परिप्रेक्ष्य में कहें तो ये सुपर-सोनिक "बाण" नैनो मिसाइल्स हैं।

वैदिककालीन नैनो मिसाइल लॉन्चिंग पैड के विषय में फिर कभी। एक ऐसा यंत्र, जो कभी किसी भौतिक नियम को खंडित नहीं करता। वो केवल आज के विज्ञान को श्रेष्ठ मानने वालों का गर्व खंडन करता है।

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