विद्युतबैटरी का आविष्कार भारत मे



महर्षि अगस्त्य की उत्पत्ति रहस्य ।
रामायण में वर्णित अलंकारिक कथा में वसिष्ठ- अगस्त्य की उत्पत्ति मित्रावरुणके वीर्य को घड़े में संचित करने से हुई है । वास्तव में यह एक वैज्ञानिक विधा है ,जिसे गुप्त रखने के लिये इस तरह अलंकारिक रूपक बनाकर लिखा गया है । वास्तव में यह रहस्य है ,विद्युतके उत्पादन का ।
आप यह तो जानते ही होंगे ,विद्युतके दो रूप हैं । एक अप्रकट रूप जो आकाश में और तारों में विद्यमान रहता है । दूसरा है प्रकट रूप जो अम्बरके संयोग होने पर , और बल्व के स्विच ऑन करने पर बल्व के माध्यम से दृष्टिगोचर होता है । अप्रकट तड़ित तो विद्यमान है ही ,लेकिन प्रकट रूप के लिये एक विधा विशेष की आवश्यकता होती है । अन्यथा आकाशमें अम्बर के संयोग होने पर तड़ित दृष्टिगोचर होगी ,उसे मनुष्य अपने उपयोग में नहीं ला सकेगा । आपने कथा सुनी मित्र - वरुण ने अपना वीर्य घड़े में संचित किया ,जिससे अगस्त्य वसिष्ठ-अगस्त्य ऋषि की उत्पत्ति हुई । मित्र सूर्य का नाम है और वरुण जल का । सूर्य और जल से ही ऊर्जा उत्पन्न की जाती है । (सूर्य से उत्पन्न सौलर लाइट है जो सूर्य की ऊर्जा से उत्पन्न की जाती है । जल से उत्पन्न बिजली जिसे हम सामान्यतय प्रयोग में ला रहे हैं ) कहने का तात्पर्य है मित्रावरुण शक्ति विद्युत का नाम है ,जो अप्रकट रूप है , जब यह शक्ति घट में प्रवाहित होती है ,तब उस घट से वसिष्ठ-अगस्त्य प्रकट विद्युत की उत्पत्ति होती है । अर्थात् अप्रकट विद्युत को प्रकट विद्युत बनाने की विधा है ,अगस्त्य उत्पत्ति रहस्य । अगस्त्य संहिता में स्वयं अगस्त्य ऋषि ने इस विधा का विस्तार से वर्णन किया है ।
हम मानते हैं की विद्युत बैटरी का आविष्कार बेंजामिन फ़्रेंकलिन ने किया था, किन्तु आपको यह जानकार सुखद आश्चर्य होगा की बैटरी के बारे में सर्वप्रथम एक हिन्दू ने विश्व को बतलाया
अगस्त्य संहिता में महर्षि अगस्त्य ने बैटरी निर्माण की विधि का वर्णन किया था ।
अगस्त्य संहिता में एक सूत्र हैः
संस्थाप्य मृण्मये पात्रे ताम्रपत्रं सुसंस्कृतम्‌। छादयेच्छिखिग्रीवेन चार्दाभि: काष्ठापांसुभि:॥
दस्तालोष्टो निधात्वय: पारदाच्छादितस्तत:। संयोगाज्जायते तेजो मित्रावरुणसंज्ञितम्‌॥
अर्थात् एक मिट्टी का बर्तन लें, उसमें अच्छी प्रकार से साफ किया गया ताम्रपत्र और शिखिग्रीवा (मोर के गर्दन जैसा पदार्थ अर्थात् कॉपरसल्फेट) डालें। फिर उस बर्तन को लकड़ी के गीले बुरादे से भर दें। उसके बाद लकड़ी के गीले बुरादे के ऊपर पारा से आच्छादित दस्त लोष्ट (mercury-amalgamated zinc sheet) रखे।
इस प्रकार दोनों के संयोग से अर्थात् तारों के द्वारा जोड़ने पर मित्रावरुणशक्ति की उत्पत्ति होगी। यहाँ पर उल्लेखनीय है कि यह प्रयोग करके भी देखा गया है जिसके परिणामस्वरूप 1.138 वोल्ट तथा 23 mA धारा वाली विद्युत उत्पन्न हुई। स्वदेशी विज्ञान संशोधन संस्था (नागपुर) के द्वारा उसके चौथे वार्षिक सभा में ७ अगस्त, १९९० को इस प्रयोग का प्रदर्शन भी विद्वानों तथा सर्वसाधारण के समक्ष किया गया।
अगस्त्य संहिता में आगे लिखा हैः
अनेन जलभंगोस्ति प्राणो दानेषु वायुषु। एवं शतानां कुंभानांसंयोगकार्यकृत्स्मृत:॥
अर्थात सौ कुम्भों (अर्थात् उपरोक्त प्रकार से बने तथा श्रृंखला में जोड़े ग! सौ सेलों) की शक्ति का पानी में प्रयोग करने पर पानी अपना रूप बदल कर प्राण वायु (ऑक्सीजन) और उदान वायु (हाइड्रोजन) में परिवर्तित हो जाएगा।
फिर लिखा गया हैः
वायुबन्धकवस्त्रेण निबद्धो यानमस्तके उदान स्वलघुत्वे बिभर्त्याकाशयानकम्‌।
अर्थात् उदान वायु (हाइड्रोजन) को बन्धक वस्त्र (air tight cloth) द्वारा निबद्ध किया जाए तो वह विमान विद्या (aerodynamics) के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है। स्पष्ट है कि यह आज के विद्युत बैटरी का सूत्र (Formula for Electric battery) ही है। साथ ही यह प्राचीन भारत में विमान विद्या होने की भी पुष्टि करता है।

                      निरँजनप्रसाद पारीक
                             *वेदिका*

Comments

Popular posts from this blog

नासिका के स्वर विज्ञान का महत्व

भारत का प्राचीन खगोल विज्ञान

भारत का प्राचीन औद्योगिक विकास