एकलव्य का अँगूठा


महाभारत के  गुरु द्रोणाचार्य पर एक आरोप बिना तथ्यों के लगाकर उसे प्रचारित भी किया गया। वामपंथ और मूढजन द्वारा उन आरोपों का खंडन करती ये पोस्ट===

जो लोग तीरंदाजी का अभ्यास करते हैं , वे यह बात भलीभाँति जानते हैं कि  बाण चलाने में दाहिने हाथ के अँगूठे का उपयोग नहीं किया जाता । यदि अँगूठे और अँगुली की सहायता से  बाण पर पकड़ बनाकर छोड़ा जाये तो बाण कभी भी सही निशाने पर नहीं लगेगा ।
ये बात आप किसी तीरँदाजी करते व्यक्ति को या उसके चित्र कौ देखकर आसानी से जान सकते हैं।
एक कथा के अनुसार द्रोणाचार्य ने एकलव्य से दाहिने हाथ का अँगूठा  दक्षिणा में माँगा था ।
इस कथानक को न समझने वाले और धनुर्विद्या से पूर्णतः अनभिज्ञ लोग  कहते हैं कि  द्रोणाचार्य ने एकलव्य के साथ ऐसा न किया होता तो वह अर्जुन से भी श्रेष्ठ धनुर्धर हो जाता । ऐसे मूढजन भारतीय संस्कारों और गुरु-शिष्य परम्परा की पवित्रता व महत्ता को नहीं जानते ।
गुरु द्रोणाचार्य ने जब यह देखा कि एकलव्य जिसने उन्हें अपना मानस गुरु बना रखा है और सही विधि को न जानकर धनुष बाण चला रहा है , जिस कारण वह श्रेष्ठ धनुर्धर नहीं बन पायेगा  और गुरु का नाम खराब करेगा . इसलिये गुरु द्रोणाचार्य ने दक्षिणा में उसके अँगूठे को माँगा अर्थात्  दाहिने हाथ के अँगूठे के उपयोग को जो धनुष बाण संचलन में वर्जित है। ऐसा कहीं ना कहीं उसको श्रेष्ठ धनुर्धर बनाने की दिशा मे उठाया कदम था,जिसे केवल प्राचीन गुरूशिष्य की महान परँपरा को कलँकित करने के षड्यंत्र के तहत प्रचारित किया गया।।
विश्व  में अनेक आदिवासी स्थान हैं , वहाँ पहुँचकर  कोई भी देख और सीख सकता है कि धनुष बाण कैसे चलाया जाता है हमे इस घटना के सकारात्मक पक्ष को देखकर ऐतिहासिक पात्रों के साथ सही न्याय करने की आवश्यकता है।।

षडयंत्र तो हुआ है एक महान गुरू के साथ,, आइए जानते हैं
गुरु द्रोणाचार्य।
जन्म ३५३८ ई पू , मोक्ष ३१३८ ई पू
जब भी महान् योद्धाओंकी बात होती है ,तब गुरु द्रोणाचार्यका नाम सर्व प्रथम लिया जाता है

कल एक मित्रके मुखसे गुरु द्रोणके प्रति अपमान जनक शब्द सुनकर बड़ा दुःख हुआ।
उन्होंने कहा
" महारथी कर्णकी धनुर्विद्या द्रोणाचार्यके कपाल पर जवाब है "
दुःख इस बात का हुआ क्या इतिहास पढ़ाया जा रहा है? क्या इतिहास प्रसारित किया जा रहा है ?

जब भगवान् श्रीकृष्णका इस धरा धाम पर आगमन हुआ तब सभी देवताओंने भी अपने अंश धरती पर भेजे । कर्ण - सूर्यपुत्र ,युधिष्ठिर - धर्मपुत्र ,दुर्योधन -कलियुग,भीमसेन-वायुपुत्र, अर्जुन-इन्द्रपुत्र,नकुल-सहदेव-अश्विनीकुमारपुत्र,अश्वत्थामा-रूद्रअंश ,अभिमन्यु-चन्द्रपुत्र वर्चा ।

इन समस्त देवताओंके अंशोंके गुरुरूपमें देव गुरु भगवान् बृहस्पति आचार्य द्रोण हुए ।

महर्षि भरद्वाजके पुत्रका जन्म द्रोण कलशसे हुआ इसलिए द्रोण नामसे प्रसिद्ध हुए । द्रोणाचार्यके प्रथम गुरु स्वयं पिता भरद्वाज थे दूसरे गुरु भगवान् परशुराम थे और तीसरे गुरु महान् धनुर्धर भार्गव अग्निवेश्य थे जिन्होंने द्रोणाचार्यको ब्रह्मशिर अस्त्र प्रदान किया था ।

तपस्वी ब्राह्मण द्रोण बचपन में पृषत पुत्र द्रुपदके मित्र थे किन्तु राजा बनने पर द्रुपद मित्रता भूल गए और द्रोणको अपमानित किया ।

अपने बालक को आटाको जलमें घोलकर(उसी को दूध समझता था) पीता देखकर द्रोणको अपनी दरिद्रता पर बहुत कष्ट हुआ वो तो त्यागी ब्राह्मण थे किन्तु पुत्रको इस परिस्थितिमें देखकर विचलित हो गए । और चले गए हस्तिनापुर ।

कौरव-पाण्डवोंकी कन्दुकको कुआँमें से तिनकोंसे जब निकाल दीया ,तब भीष्म पितामह जान गए कि द्रोणाचार्य आ गए हैं नगरमें । भीष्म पितामहके आग्रह पर कौरव-पाण्डवोंका गुरू बनना स्वीकार किया ।

उनपर ये झूठा आरोप है गुरु द्रोणने पक्षपात किया और कर्णको शिक्षा नही दी इसीलिए कर्ण अर्जुनका शत्रु हो गया ।
वास्तवमें गुरु द्रोणके पास देश-विदेशसे राजकुमार आते थे अस्त्र-विद्या सीखने ।

#वृष्णायश्चान्धकाश्चेव_नानादेश्याश्च_पार्थिवः !
#सूतपुत्रश्च_राधेय_गुरुं_द्रोणमियात्_तदा !!
(महाभारत आदिपर्व०१३१/११)

अर्थात् - वृष्णिवंशी तथा अंधकवंशी क्षत्रिय, नाना देशोंके राजकुमार तथा राधानन्दन सूत पुत्र कर्ण -ये सभी आचार्य द्रोणके पास (अस्त्र विद्या की शिक्षा लेने आये ) ।
कर्ण गुरु द्रोणसे शिक्षा पाता था किन्तु अर्जुन से ईष्या रखता था । महाराज पाण्डुकी मृत्युके बाद असहाय बालक पाण्डवोंको कौरवोंने बड़ा कष्ट दिया ।

#स्पर्धामानस्तु_पार्थेन_सूत_पुत्रोऽत्यमर्षण: !
#दुर्योधनं_समाश्रित्य_सोऽवमन्यत_पाण्डवान् !!
(महाभारत आदिपर्व १३१/१२)
अर्थात् - सूत पुत्र कर्ण सदा ही अर्जुन से सदा ही लाग-डांट रखता था और अत्यंत अमर्षमें भरकर दुर्योधनका सहारा लेकर पाण्डवोंका अपमान करता था ।

गुरुद्रोण तो इतने निष्पक्ष थे कि जो विद्या अपने पुत्रको भी न दी वो अर्जुनको दी ,इसमें अर्जुन का गुरु द्रोणके प्रति महान् सेवा भाव और धनुर्वेद के प्रति समर्पण था।

जब गुरु द्रोणने सभी विद्यार्थियोंसे शिक्षा समाप्त होनेके बाद उनका एक कार्य करनेका वचन माँगा तो कोई विद्यार्थी आगे न आया केवल बालक अर्जुन ही गुरुके लिए कार्य करने की प्रतिज्ञा की , तब गुरु द्रोणकी आँखोंमें आँशु आ गए और अर्जुन को हृदयसे लगा लिया ।
अर्जुन रात्रि के अंधकार में भी धनुर्वेद का अभ्यास करते जब सभी सो रहे होते । गुरु द्रोणकी मकरसे रक्षाकी थी और सभी राजकुमार मुंह देखते रहे तब क्यों अर्जुन प्रिय शिष्य न होते गुरु द्रोणके ? गुरु द्रोणने द्रुपदसे मित्रता मांगी थी किंतु उन्होंने अपमान किया । जब अर्जुनने गुरु दक्षिणामें द्रुपद को बन्दी बनाकर दिया तब् भी गुरु द्रोण मित्रता ही माँगी इसलिए उनका आधा राज्य वापस कर दिया चाहते तो सम्पूर्ण पाञ्चालके राजा हो जाते फिर भी स्वयं राज्य न करके पुत्र को राज्य देकर स्वयं त्यागी ब्राह्मण रहे । द्रुपदने द्रोणको मारने वाला पुत्र प्राप्त किया ,फिर द्रोणने उसे सम्पूर्ण शिक्षा दी । अपने हन्ता धृष्टद्युम्नके प्रति भी कोई। भेदभाव न किया उसे सभी अस्त्र प्रदान किए । ये निष्पक्षता थी महात्मा द्रोणाचार्यकी ।

एकलव्यके साथ अन्याय करना अवश्य लोगोंको दीखता है किन्तु उसके पीछे का कारण नहीं दीखता ।

सम्पूर्ण भारतकी राजनीतिका केंद्र कुरुजांगल देश था जिसके महामहिम पितामह भीष्म थे । राष्ट्र की सुरक्षाका उत्तरदायित्व था ।
दूसरी तरफ मगधका राजा जरासन्ध विदेशी शक्तियोंसे मिलकर भारतमें राजनितिक परिवर्तन लाना चाहता था क्योंकि उसका जामाता कंस श्रीकृष्णके हाथों मारा जा गया था ।
जरासन्धने चीनके (प्राज्ञज्योतिष्पुर) राजा। नरकासुर ,भगदत्त ,शोणितपुर का राजा बाणासुर और यवनदेशका राजा कालयवन आदि अनगिनत विदेशी राजाओंके साथ मिलकर मथुरा को नष्ट कर दिया था और अब सम्पूर्ण भारतमें अपनी शक्ति फैला रहा था । ८६ राजाओंको बन्दी बना चुका था । अब ऐसे में एक और शक्तिका मगधमें उदय हुआ वो था हिरण्यधनुका पुत्र एकलव्य । एकलव्य जरासन्ध का विश्वासपात्र था ऐसे व्यक्तिको गुरु द्रोण क्यों शिक्षा देते जो स्वयं राष्ट्रके लिए भय था । क्या केंद्र सरकारकी अनुमतिके बिना कोई भी वैज्ञानिक इसरोमें किसी भी व्यक्ति को परमाणु परीक्षण करा सकते हैं ?? ये केवल प्रधानमंत्रीके अनुमति से ही उनके सामने किया जाता है । ऐसा ही उस समय द्रोणके लिए था बिना भीष्मकी अनुमतिके शत्रुदेशके युवक को दिव्यास्त्रोंकी शिक्षा नही दे सकते थे जो कि परमाणुसे भी शक्तिशाली थे ।

गुरु द्रोण ने एकलव्य से गुरू दक्षिणामें अंगूठा माँगा तो मध्यमा -तर्जनी ऊँगलीसे बाण चलाना भी सिखा दिया था जिससे उसके साथ अन्याय न हो ।

#एवं_कर्तव्यमिति_वा_एकलव्यमभाषत !
#ततः_शरं_तु_नैषादिरङ्गुली_भिर्व्यकर्षति !!
(महाभारत आदि पर्व )
अर्थात् -उन्होंने संकेत से एकलव्यको सिखा दिया तर्जनी और मद्यमा के सहयोगसे बाण पकड़कर किस प्रकार डोरी खीची जाए और बाण चला सके ।

गुरु द्रोण के विषयमें जो भ्रांतियाँ सीरियल वालो और साहित्यकारोंने फैलायीं हैं वो दुःखद हैं । एक महात्माके साथ अन्याय है जिन्होंने अपने पुत्र से अधिक अपने शिष्य को महत्व दिया ।

                         निरँजनप्रसाद पारीक
                                 वेदिका


       

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