भारत का स्वर्णिम अतीत

भारत का स्वर्णिम इतिहास
भारत को ‘सोने की चिडिय़ा’ क्यों कहते थे ?

भारत का एक अतीत है जो बहुत पुराना है जो वेदों के समय से लेकर दसवीं शताब्दी तक का है। भारत के उस अतीत के बारे में बात करेंगे जो हाल में हमारे सामने रहा। 100-200 साल पहले 18 शताब्दी, 17 शताब्दी व 15 शताब्दी तक आज से लगभग 100-150 साल पहले से शुरू करेंगे। पिछले हजार साल का इतिहास कैसा है। भारत के अतीत पर दुनिया भर के 200 से ज्यादा विद्वान इतिहास विशेषज्ञों ने बहुत शोध किया। ये विशेषज्ञों के बारे में क्या कहते हैं।

एक अंग्रेजी इतिहासकार हुआ जिसका नाम विलियम डिगबी था। उसने बिना कारण कभी कोई बात नही की। कोई भी दस्तावेज बिना सबूतों के वह नही लिखता था। इसलिए इसकी इज्जत पूरे यूरोप अमेरिका में होती थी।

डिगबी ने भारत के बारे में एक बड़ी पुस्तक लिखी थी। डिगबी कहता है कि अंग्रेजों के पहले भारत विश्व का सर्वमान्य कृषि प्रधान देश ही नही, बल्कि ये सर्वश्रेष्ठ औद्योगिक और व्यापारिक देश भी था। वह कह रहा है ‘सर्वश्रेष्ठ’। महयूम डिगबी कह रहा है कि सारी दुनिया के देशों में से भारत औद्योगिक रूप से, व्यापारिक रूप से और कृषि के रूप में सर्वश्रेष्ठ देश है। भारत देश कृषि व व्यापार दुनिया में सबसे ज्यादा करता है। भारत की भूमि इतनी उपजाऊ है जितनी कि किसी भी देश की नही है। भारत के कारीगर इतने होशियार हैं जितने दुनिया में किसी भी देश के नही हैं।

भारत के कारीगर हाथ से कपड़ा बनाते हैं उनका बनाया हुआ कपड़ा रेशम का तथा अन्य वस्तुएं पूरे विश्व के बाजार में बिक रही हैं और जब इन वस्तुओं को भारत के व्यापारी बेचते हैं तो बदले में वो सोना और चांदी की मांग करते हैं। जो दुनिया के सारे व्यापारी भारत को आसानी से दे देते हैं। वह कह रहा है कि भारत का कपड़ा और अन्य वस्तुएं दुनिया के बाजार में बिकती हंै और भारतवासी इनके बदले में सोना लेते हैं, क्योंकि यहां की वस्तुएं सर्वश्रेष्ठ होती हैं, और दुनिया का कोई देश इन्हें बना नही सकता। इनकी कारीगरी और हुनर भारत और सिर्फ भारत के पास ही है। भारत देश में इन वस्तुओं के उत्पादन के बाद की जो बिक्री की प्रक्रिया है वो दूसरे देशों के पास नही है अत: भारत में सोना और चांदी ऐसे प्रवाहित होता है जैसे नदियों में पानी प्रवाहित होता है। दुनिया का सारा सोना चांदी भारत में ही एकत्रित हो गया। दुनिया का सारा सोना, चांदी भारत में आता तो है लेकिन बाहर नही जाता। भारतवासी कभी किसी देश से कोई वस्तु नही खरीदते थे क्योंकि वे सारी वस्तुओं का निर्माण खुद करते थे। आज से 300 साल पहले का भारत निर्यात प्रधान देश था और अन्य देशों से आयात नही करता था।

फ्रासंवा फयांग नाम का एक और अंग्रेज इतिहासकार था जिसने 1711 में भारत के बारे में बहुत बड़ा ग्रंथ लिखा है, और उसमें उसने सैकड़ों प्रमाण दिये हैं।

फयांग अपनी पुस्तक में कहता है कि भारत देश में मेरी जानकारी में 36 तरह के ऐसे उद्योग चलते हैं जिनमें उत्पादित होने वाले हर वस्तु विदेशों में निर्यात होती है। फिर वह आगे लिखता है कि भारत के सभी शिल्प और उद्योग उत्पादन में सर्वश्रेष्ठ, उत्कृष्ट और कीमत में सबसे सस्ते हंै। सोना, चांदी, लोहा, इस्पात, तांबा और अन्य धातुएं, लकड़ी के सामान मूल्यवान दुर्लभ पदार्थ थे, सब वस्तुएं भारत में इतनी विविधता के साथ बनती थी जिनका कोई अंत नही हो सकता और जो सबसे महत्वपूर्ण बात वो कह रहा है वह यह है कि मुझे जो प्रमाण मिले हैं उसके आधार पर उनसे यह पता चलता है कि भारत का निर्यात अन्य देशों में पिछले तीन हजार साल से बिना रूके चल रहा है। 17वीं शताब्दी में 1000 साल पहले पूरी गणना की जाए तो महात्मा बुद्घ के लगभग 500 वर्ष पहले हमारे देश के तीर्थंकर महावीर स्वामी के जन्म के लगभग 650 वर्ष पहले भारत दुनिया के सभी देशों के बाजार में सबसे ज्यादा निर्यात करने वाला देश था।

भारत में दुनिया का सबसे बेहतरीन कपड़ा बनता था और सारी दुनिया के देशों में बिकता था। मार्टिन नाम का जो स्कॉटिश इतिहासकार है, वह कहता है कि मुझे ये स्वीकार करने में कोई शर्म नही है कि भारतवासियों ने सारी दुनिया को कपड़ा बनाना और पहनना सिखाया है। वह कहता है हम अंग्रेजों ने और सहयोगी जातियों के लोगों ने भारत से ही कपड़ा बनाना सीखा है और पहनना भी सीखा है।

रोमन साम्राज्य में जितने भी राजा रानी थे वे सभी भारत से कपड़े मंगाते रहे थे और पहनते रहे। उनसे उनका जीवन चलता रहा है। एक फारसी इतिहासकार है जो 1750 में आया, उसका नाम टैवर्नियर है, वे कहते हैं कि भारत के वस्त्र इतने सुंदर व इतने हल्के हैं कि हाथ पर रखो तो पता ही नही चलता है। सूत की महीन कताई मुश्किल से नजर आती है।
भारत में कालीकट ढाका और सूरत मालवा में इतना महीन कपड़ा बनता है कि पहनने वाले का शरीर ऐसे दिखता है कि मानो वे एक दम नग्न है। इतनी अदभुत बुनाई भारत के कारीगर जो हाथ से कर सकते हैं, वह दुनिया के किसी भी देश से कल्पना करना संभव नही है। फिर उसके बाद विलियन वाटवे अंग्रेज इतिहासकार कहता है कि भारत के मलमल का उत्पादन इतना विलक्षण है और ये भारत के कारीगरों के हाथों का कमाल है कि जब इस मलमल को घास पर बिछा दिया जाता है तो उस पर कोई ओस की बूंद गिर जाती है तो वह दिखाई नही देती है। वाटवे कहता है कि भारत का तेरह गज का एक लंबा कपड़े का थान हम चाहें तो एक छोटी सी रिंग में से पूरा खींच कर बाहर निकाल सकते हैं। इतनी अंग्रेजों ने तो कपड़ा बनाना सन 1780 के बाद शुरू किया है। भारत में तो पिछले तीन हजार साल से कपड़े का उत्पादन होता रहा है और सारी दुनिया में बिकता रहा है।
थॉमस मुंडरो मद्रास का गर्वनर रह चुका है। किसी राजा ने उसको एक शाल भेंट में दिया और जब थॉमस मुंडरो की नौकरी पूरी हो गयी तो वह भारत से वापस लंदन चला गया। लंदन की संसद में उसने सन 1813 में एक दिन अपना बयान दिया कि वह भारत से एक शाल लेकर आया उसको मैं सात साल से उपयोग कर रहा हूं। उसे कई बार धोया भी है व कई बार उपयोग किया है, उसके बाद भी उसकी क्वालिटी एक दम बरकरार है। उसमें कहीं कोई सिकुडऩ नही आयी। मैंने पूरे यूरोप में प्रवास किया ऐसा कोई भी देश नही है जो भारत की जैसी क्वालिटी की शाल बनाकर दे सके। भारत ने अपने वस्त्र उद्योग में सारी दुनिया का दिल जीत लिया है और भारत की वस्तुएं अनुपम मापदण्ड की हैं। जिसमें सारे भारतवासी रोजगार पा रहे हैं। आप अंदाजा लगा सकते हैं कि फ्रांसीसी इतिहासकार स्कोटिश, अंग्रेज व जर्मन इतिहासकार या अमरीका का कोई इतिहासकार जो भारत के बारे में शोध करते हैं वे कहते हैं कि भारत के उद्योगों का और भारत की कृषि व्यवस्था का भारत के व्यापार का सारी दुनिया में कोई मुकाबला नही है।

लंदन में अंग्रेजों की संसद में बहस हो रही है कि भारत की आर्थिक स्थिति कैसी है? दुनिया के सारे देशों का कुल उत्पादन 57 प्रतिशत है लेकिन केवल भारत का उत्पादन 43 प्रतिशत है। यह अंग्रेजी संसद में सबसे पहले सन 1813 में रिकॉर्ड किया था। अंग्रेजों का कहना है कि सन 1840 तक भारत का उत्पादन जो कुल दुनिया का उत्पादन का 43 प्रतिशत है। आज से लगभग 175 साल पहले भारत का उत्पादन चीन और अमेरिका के उत्पादन से थोड़ा ही कम था। अंग्रेजी संसद में यह आंकड़ा भी रिकॉर्ड किया गया कि सारी दुनिया के व्यापार में भारत के लाभ का हिस्सा 33 प्रतिशत है। सन 1840 तक बड़ा उत्पादक, निर्यातक और व्यापारिक देश भारत रहा है। सारी दुनिया में 1840 तक अमेरिका का निर्यात 1 प्रतिशत से कम था और ब्रिटेन का 0.5 प्रतिशत। एक तरफ यूरोप और अमेरिका हैं तो दूसरी तरफ भारत निर्यातक के क्षेत्र में सबसे अग्रणी देश था।

उद्योगों के साथ-साथ देश में विज्ञान और तकनीक का विकास हुआ है। 18वीं शताब्दी तक इस देश में इतनी बेहतरीन टैक्टनोलॉजी रही है। स्टील बनाने की जो कोई कल्पना नही कर सकता है ऐसी टैक्टनोलॉजी अन्य किसी देश के पास न थी और न ही है। एक बहुत बड़ा धातु विशेषज्ञ जेम्स फ्रेंकलिन कहता है कि भारत का स्टील दुनिया में कोई नही बना सकता। जेम्स कहता है कि यूरोप में लोहा बनाना 1825 के बाद शुरू किया गया, जबकि भारत में तो लोहा 10वीं शताब्दी से ही हजारों हजारों टन में बनकर अन्य देशों में बिकता रहा है। जेम्स भारत से एक स्टील का नमूना लेकर लंदन आया था उसने वह इंग्लैंड के विशेषज्ञ डॉ. स्कॉट को यह स्टील का टुकड़ा दिया और यह कहा कि लंदन रॉयल सोसायटी की तरफ से आप इसकी जांच करें। डा. स्कॉट ने इस स्टील की जांच कराई और कहा कि भारत का यह स्टील इतना अच्छा है कि सर्जरी के लिए बनाये जाने वाले सारे उपकरण इससे बनाये जा सकते हैं जो दुनिया में किसी दूसरे देश के पास उपलब्ध नही हैं। डा. स्कॉट 1764 में इस बात को कह रहे थे कि दुनिया में किसी भी देश के पास सर्जरी के लायक बनाने वाला स्टील नही है क्योंकि उनकी क्वालिटी इतनी अच्छी नही है।

लेफ्टिनेंट कर्नल बोकर एक अंग्रेज वैज्ञानिक थे जिसने भारत की इंडस्ट्रीज पर सबसे ज्यादा रिसर्च किया। वह कहता है कि भारत का जो अदभुत लोहा, स्टील है यह जहाज बनाने के काम में बहुत ज्यादा आता है। दुनिया में जहाज बनाने की सबसे पहली कला और तकनीक भारत में ही विकसित हुई है।

दुनिया ने पानी के जहाज बनाना, भारत से ही सीखा है। वह कहता है कि भारत इतना विशाल देश है कि इसमें लगभग दो लाख गांव है इन गांवों को समुद्र के किनारे स्थापित माना जाता है। इन गांवों में जहाज बनाने का कार्य हजारों सालों से चल रहा है। ईस्ट इंडिया कंपनी के पानी के जहाज दुनिया में चल रहे है। ये सारे जहाज भारत की स्टील से बनाये हुए हैं। इसलिए वह कहता है हमको भारत से व्यापार करके यह सब तकनीक लेनी है और इस तकनीक को इंगलैंड में लाकर रिप्रोड्यूज करती है।

इसी प्रकार भारत विज्ञान में भी सबसे आगे है। भारत में 20 से ज्यादा विज्ञान शाखाएं हैं जो बहुत ज्यादा पुष्पित और पल्लवित हुई हैं। इनमें सबसे बड़ी शाखा खगोल विज्ञान है, दूसरी नक्षत्र, तीसरी बर्फ बनाने का विज्ञान, चौथी धातु बनाने का विज्ञान है। ऐसी बीस तरह की शाखा भारत में हैं। इतिहासकार बोकर कहता है कि विज्ञान की भारत में जो ऊंचाई है उसका अंदाजा अंग्रेजों को नही लग सकता। यूरोप का एक वैज्ञानिक कॉपरनिकस ने पहली बार बताया कि सूर्य और पृथ्वी का क्या संबंध है?

यही पहला वैज्ञानिक था जिसने सूर्य के सभी उपग्रहों की जानकारी सारी दुनिया को दी। कॉपरनिकस ने यह जो दूरी नापी है। बोकर ने इस बात को गलत कहां और बताया कि कॉपरनिकस के जन्म से भी हजारों वर्ष पूर्व भारतीय वैज्ञानिक आर्यभट्ट ने सही सही नापी थी। जितनी दूरी आर्यभट्ट ने कह दी है यूरोप का कोई भी वैज्ञानिक इस दूरी को एक इंच भी इधर उधर नही कर पाये। आज यह दूरी यूरोप अमेरिका व अन्यदेशों में मापी जाती है। भारत में ऐसे वैज्ञानिक हुए हैं जिन्होंने सूर्य से पृथ्वी की दूरी तक नाप ली है तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि भारत विज्ञान में कितना विशाल है।

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