भारत की प्राचीन विमानविद्या

आसमान मे उडते हुए पक्षियों को देखकर विमान बनाने की कल्पना भारत के कई हजार वर्षों पुराने ग्रँथों मे पढने को मिलती है।न केवल कल्पना बल्कि पर्याप्त साक्ष्य हैं जो सिद्ध करते है कि भारतीय मनीषियों ने इस भारतभूमि पर उडने वाले विमानों का आविष्कार किया था।
विश्वेतिहास मे प्रचलित है कि 1903 मे राईटबँधुओ ने किटीहोक बनाकर उडाया था लेकिन इससे भी पहले भारत के शिवकरबापूजी तलपडे ने इससे भी अधिक क्षमता वाला ग्लाईडर उडाया था।इसके कुछ समय बाद पर राइटबँधुओ से पहले 1780 मे दो फ्रेंच नागरिकों ने पेरिस मे हवा से हल्के गुब्बारे मे वायु भरकर कुछ दूर उडान भरी थी।अन्य कुछ सभ्यताओं ने भी उडान की तकनीक विकसित की थी लेकिन इन सब सभ्यताओं से बहुत ज्यादा पहले यानि भारत के पौराणिक युग जो सात से नौ हजार वर्ष पूर्व रहा होगा तब के ग्रँथो मे विमान निर्माण की बिल्कुल प्रमाणिक विधियां वर्णित हैं जो आज की विमान निर्माण विधियों से हुबहू मेल खाती है।
स्कँधपुराण के खँड तीन अध्याय 23 मे उल्लेख मिलता है कि ऋषि कर्दम ने अपनी पत्नी के लिए एक विमान की रचना की थी जिसके द्वारा कही भी आना जाना हो सकता था।
विद्यावाचस्पति मधुसूदन सरस्वती ने इँद्रविजय नामक ग्रँथ मे ऋग्वेद के 36वे सूक्त के प्रथम मँत्र का अर्थ लिखा है जिसमे कहा गया है कि ऋभुओ ने तीन पहियों वाला ऐसा रथ बनाया था जो आकाश मे उड सकता है।रामायण मे पुष्पकविमान की चर्चा हुई तथा श्रीलंका मे रावण का हवाई अड्डा भी खोजा जा चुका है।
इस क्रम मे सबसे महत्वपूर्ण जो तथ्य है वो महर्षि भरद्वाज का विमानशास्त्र है जिसे पढकर आज के तमाम वैज्ञानिक दाँतो तले उँगली दबाने को मजबूर हो जाते है।इस विमान शास्त्र मे विमान की परिभाषा,रहस्यज्ञ(विमानचालक),इसमे पहनने वाले कपडे,इसके पुर्जे,इसकी ऊर्जा-यँत्र तथा निर्माण के लिए जरूरी धातुओं तक का पूरा साँगोपाँग वर्णन है।
भरद्वाज ने उनसे भी पूर्ववर्ती विमानशास्त्रियो व ग्रँथो के बारे मे भी लिखा है यथा- नारायण रचित विमानचँद्रिका,शौनक रचित व्योमयान,गर्ग रचित यँत्रकल्प, वायस्पति रचित यानबिँदु, चाक्रायणी रचित खेटयान प्रदीपिका, धूण्डीनाथ रचित व्योमयानार्कप्रकाश आदि प्रमुख है।विमानशास्त्र मे उल्लेखित प्रमुख यान 'गोधा' ऐसा विमान था जो अदृश्य हो सकता था जिससे बिना दुश्मन को पता चले उसके क्षेत्र मे जाया जा सकता था।
'परोक्ष' दूसरों के विमान को पँगु कर सकता था ये एक प्रमुख युद्ध विमान था,इसमे प्रलय नामक विद्युत शस्त्र था जिसमे विमानचालक भयँकर तबाही मचा सकता था।'जलदरूप'जो बादल की भाँति दिखने वाला छद्मावरण मे माहिर यान था।
इस प्रकार के अनेक विमानों का वर्णन इस ग्रंथ मे प्राप्त होता है और अनेक विमाननिर्माणशोध इन पर होते है ऐसे मे कोई सँदेह नहीं कि भारत मे हजारों वर्षों पूर्व ऐसे विमान उडते हो।अभी हाल ही मे सन 2012 मे अफगानिस्तान कि किसी गुफा मे टाईमवेल से फँसा एक विमान देखा गया जिसे निकालने गए आठ अमरीकी सैनिक स्वयं गायब हो गए तब एक रूसी कँपनी ने इसपर जो रिसर्च की उस रिपोर्ट के अनुसार इस विमान के चार पहिए है तथा इसके ईजन के चलते ही बहुत प्रकाश उत्पन्न होता है और ये एक बहुत ही भारी तकनीक से निर्मित है।

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