भारत की प्राचीन विपुल थातियो की एक बानगी

भारत मे युद्ध प्रणाली ईसा से कई हजारों वर्षों पहले ही विकसित हो चुकी थी जिसके प्रमाण अनेक प्राचीन शास्त्रों मे वर्णित हैं। यथा  ..
_ शुक्रनीति
 इस ग्रंथ का सर्वाधिक रोचक भाग यह है कि इसमें बम, बारूद, तोप , बंदूक (नालिकास्त्र) बनाने का विस्तृत वर्णन है। (देखें पृष्ठ 203,204,205)   कन्धे पर नालिकास्त्र टांग के रक्षाकर्मियों द्वारा चौराहों पर और प्रहरियों द्वारा महलों में दुर्गों पर रखवाली करने का उल्लेख है।
सड़कों पर दूरी-सूचक "मील के पत्थर" लगाने का उल्लेख है।

प्रस्तुत ग्रंथ महाभारत युद्ध से पूर्व शुक्राचार्य द्वारा लिखित विशालाकार "शुक्रनीति" का सम्पादित सार भाग है, जो महाभारत के पश्चात और आचार्य चाणक्य के पूर्व , कम से कम लगभग 2100 ईसा पूर्व सम्पादित किया गया है, इसमें अधिकांश भाग में मूल शुक्रनीति के श्लोक ज्यों के त्यों संग्रहित मिलते हैं, इसका प्रमाण यह है कि प्राचीन शुक्रनीति के जो श्लोक भगवान व्यास के महाभारत में मिलते हैं वे इसमें भी उसी रूप में मिलते हैं।

यह सब ग्रन्थ का सहस्त्रांश है, ग्रंथ राज समाज संचालन के सभी पक्षों को स्पर्श करता है।

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यह ग्रन्थ महाभारत और बुद्ध काल के मध्य के खोये हुए पन्नो को जोड़ने की एक दुर्लभ कड़ी है।

तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था को समझने के लिए यह गागर में सागर है।

इसकी नीतियां आज के समय में भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी उसके लेखन अथवा सम्पादन के समय में थीं।




इस सन्दर्भ मे कई प्रश्न हमारे समक्ष मुखरित होते हैं जो इस प्रकार हो सकते हैं.........।

पहला- अगर सनातन इतना समृद्धथा यह विधियां थी तो विलुप्त कैसे हो गई

उत्तर - महाभारत! इस युद्ध ने आर्यावर्त से बल्कि विश्व से कई श्रेष्ठ सनातन वैज्ञानिकों योद्धाओं को छीन लिया विश्व जगत की काफी क्षति हुई

कई शास्त्र वैज्ञानिक इस युद्ध में मारे गए

उत्तर -2 महाभारत से लेकर चंद्रगुप्त मौर्य तक कोई बड़ा युद्ध नहीं हुआ

इन 4000 सालों में बहुत कुछ विलुप्त हो गया यह कारण है इनका आगे के युद्ध में उपयोग नहीं हुआ

महाभारत के बाद उपयोग-

एक #सीरियल प्रसारित होता था अभी भी होता है शायद दंगल चैनल पर

"वीरता की मिसाल है -चंद्रगुप्त"

इस युद्ध में चाणक्य चंद्रगुप्त द्वारा घनानंद की सेना पर बम से हमला करवाते हैं (हालांकि इस युद्ध में चंद्रगुप्त का आक्रमण विफल हुआ था)

तो घनानंद ने इस पर कहा था

"ऐसा धमाका तो ना कभी देखा ना सुना"

चाणक्य ने इन सभी नलिका शस्त्रों अर्थात बंदूक तोप आदि का ज्ञान दिया था #चंद्रगुप्त को और चंद्रगुप्त ने इसका प्रयोग भी किया था ।ये महज एक सीरियल नहीं बल्कि ऐतिहासिक तथ्यों से प्रकट सिद्ध सच्चाई है।

अगर यह कला विलुप्त हो गई उसके पीछे अशोक और बौद्ध धर्म

आर्यावर्त पर बौद्ध धर्म पर छा जाने के बाद इन सभी कलाओं की आवश्यकता ही नहीं महसूस हुई यह सब पढ़ आना ही बंद कर दिया गया

और भारत अधोगति की ओर चला गया

भविष्य मे युद्ध केवल आत्मरक्षार्थ करने को सँकल्पबद्ध हो चुका भारतवर्ष कई आक्राँताओं से जूझता रहा।बख्तियार खिलजी जैसो द्वारा नालंदा जैसे पुस्तकालय जलाए गए जो  कई महीनों जला करते थे,मँदिरो और प्राचीन ज्ञान स्रोतों को नष्ट किया जाना भी इसी कडी मे था।

शुक्रनीति में,,,,,,,
#बीमार कर्मचारी के लिए, व्यय और वेतन विधान है।(2/151-152-153)
#चालीस वर्ष सेवा करने वाले को आजीवन पेंशन देय, यह वेतन के आधी होगी। पेंशनर की पत्नी और अविवाहित कन्या भी लाभार्थी।
चत्वारिंशत्समा नीताः सेवया येन वैनृपः।
ततः सेवाविना तस्मै भृत्यर्ध कल्पयेत्सदा।।
(2/154)
यावज्जीवं तु तत्पुत्रेsक्षमे बाले तदधकम्।
भार्यायां वा सुशीलायां कन्यायाम् वा सवश्रेयशे।।
(2/155)
#इसी प्रकार,
2/156 श्लोक में मृत कर्मचारी की नियुक्ति के हूबहू वही नियम हैं, जो आज हैं।
#बोनस प्रति वर्ष, वेतन का आठवां हिस्सा देय,,,, उत्सव में,
"अष्टमांश पारितोष्य दद्यात्भृत्याय वत्सरे।"
#अधिक कार्यकुशल को भी अतिरिक्त वेतन देने का विधान है।
#चोरी गई सम्पत्ति का भुगतान, राजकोष से करने का विधान है।(याज्ञ० 2/3)
राजा, इस प्रकार की वसूली, सम्बंधित लापरवाह अधिकारी से कर सकता है।
#नारद स्मृति में, उपभोक्ता संरक्षण के सम्बंध में निर्देश हैं।
"यदि विक्रेता ने ग्राहक को दोषरहित सामान दिखा, धोखे से दोषयुक्त सामान दिया हो तो क्रेता मुआवजा प्राप्त करने का अधिकारी है, जो कि क्रयमूल्य से दुगुना हो सकता है।परन्तु, विक्रेता ने जानबूझकर दोषयुक्त सामान न दिया है तो धन वापसी और क्रय रद्द ही होगा।"
निर्दोषम् दर्शयित्वा तु सदोषम् यः प्रयच्छति।
समूल्याद्विगुणम् दाप्यो विनयं तावदेवतु।।
अबुद्धिपूर्वकम् विक्रयतु क्रय प्रवर्तनमेव च,,,,

।।शुक्रनीति ।।
कितनी भी कोशिश कर लें, ये 6 चीज़ें हमेशा नहीं टिकती।
कई चीजें ऐसी होती हैं, जो मनुष्य को बहुत प्रिय होती है। उन्हें पाने या उस पर हमेशा अधिकार बनाए रखने के लिए वह बहुत कोशिश करता है, लेकिन एक समय आने पर वह वस्तु उससे दूर हो ही जाती है। शुक्रनीति में ऐसी ही 6 वस्तुओं के बारे में बताया गया हैं, जिन्हें हमेशा अपने पास बनाए रखना किसी के लिए भी संभव नहीं है। शुक्रनीति एक प्रसिद्ध नीतिग्रन्थ है। इसकी रचना दानवों के गुरु शुक्राचार्य ने की थी।
।। श्लोक ।।
"यौवनं जीवितं चित्तं छाया लक्ष्मीश्र्च स्वामिता।
चंचलानि षडेतानि ज्ञात्वा धर्मरतो भवेत्।।"
1. यौवन और रूप
हर कोई चाहता हैं कि उसका रूप-रंग हमेशा ऐसे ही बना रहे, वो कभी बूढ़ा न हों, लेकिन ऐसा होना किसी के लियेे भी संभव नहीं होता है। यह प्रकृति का नियम है कि एक समय के बाद हर किसी का युवा अवस्था उसका साथ छोड़ती ही है। अब हमेशा युवा बने रहने के लिए मनुष्य चाहे कितनी ही कोशिशें कर ले, लेकिन ऐसा नहीं कर पाता।
2. जीवन
जन्म और मृत्यु मनुष्य जीवन के अभिन्न अंग है। जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु निश्चित ही है। कोई भी मनुष्य चाहे कितने ही पूजा-पाठ कर ले या दवाइयों का सहारा ले, लेकिन एक समय के बाद उसकी मृत्यु होगी ही। इसलिए, अपने या अपने किसी भी प्रियजन के जीवन से मोह बांधना अच्छी बात नहीं है।
3. मन
हर किसी का मन बहुत ही चंचल होता हैं, यह मनुष्य की प्रवृत्ति होती है। कई लोग कोशिश करते हैं कि उनका मन उनके वश में रहे, लेकिन कभी न कभी उनका मन उनके वश से बाहर हो ही जाता है और वे ऐसे काम कर जाते हैं, जो उन्हें नहीं करना चाहिए। कुछ लोगों का मन धन-दौलत में होता है तो कुछ लोगों का अपने परिवार में। मन को पूरी तरह से वश में करना तो बहुत ही मुश्किल है, लेकिन योग और ध्यान की मदद से काफी हद तक मन पर काबू पाया जा सकता है।
4. परछाई
मनुष्य की परछाई उसका साथ सिर्फ तब तक देती है, जब तक वह धूप में चलता है। अंधकार आते ही मनुष्य की छाया भी उसका साथ छोड़ देती है। जब मनुष्य की अपनी छाया हर समय उसका साथ नहीं देती ऐसे में किसी भी अन्य व्यक्ति से इस बात की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए कि वे हर समय हर परिस्थिति में आपका साथ देंगे।
5. लक्ष्मी ( धन)
धन-संपत्ति हर किसी की चाह होती है। हर मनुष्य चाहता है कि उसके पास धन-दौलत हो, जीवन की सभी सुख-सुविधाएं हों। ऐसे में कई लोग धन से अपना मोह बांध लेते हैं। वे चाहते हैं कि उनका धन हमेशा उन्हीं के पास रहें, लेकिन ऐसा हो पाना संभव नहीं होता। मन की तरह ही धन का भी स्वभाव बड़ा ही चंचल होता है। वह हर समय किसी एक जगह पर या किसी एक के पास नहीं टिकता। इसलिए धन से मोह बांधना ठीक नहीं होता।
6. सत्ता या अधिकार
कई लोगों को पॉवर यानि अधिकार पाने का शौक होता है। वे लोग चाहते हैं कि उन्हें मिला पद या अधिकार पूरे जीवन उन्हीं के साथ रहें, लेकिन ऐसा होना संभव नहीं है। जिस तरह परिवर्तन प्रकृति का नियम है, उसी तरह पद और अधिकारों का परिवर्तन भी समय-समय पर जरूरी होता है। ऐसे में अपने वर्तमान पद या अधिकार को हमेशा अपने ही पास रखने की इच्छा मन में नहीं होनी चाहिये।
भारतवर्ष अपनी महानता विश्वकल्याण की अवधारणा पर केन्द्रित करने मे मानता रहा है।

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