प्राचीन अँकगणित
*अंकगणित*
हड़प्पाकालीन संस्कृति के लोग अवश्य ही अंकों और संख्याओं से परिचित रहे होंगे। इस युग की लिपि के अब तक न पढ़े जा सकने के कारण निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। लेकिन भवन, सड़कों, नालियों, स्नानागारों आदि के निर्माण में अंकों और संख्याओं का निश्चित रूप से उपयोग हुआ होगा। माप-तौल और व्यापार क्या बिना अंकों और संख्याओं के संभव था? हड़प्पाकालीन संस्कृति की लिपि के पढ़े जाने के बाद निश्चित ही अनेक नए तथ्य उद्घाटित होंगे। इसके बाद वैदिककालीन भारतीय अंकों और संख्याओं का उपयोग करते थे। वैदिक युग के एक ऋषि मेघातिथि 1012 तक की बड़ी संख्याओं से परिचित थे। वे अपनी गणनाओं में दस और इसके गुणकों का उपयोग करते थे। ‘यजुर्वेद संहिता’ अध्याय 17, मंत्र 2 में 10,00,00,00,00,000 (एक पर बारह शून्य, दस खरब) तक की संख्या का उल्लेख है। ईसा से 100 वर्ष पूर्व का जैन ग्रन्थ ‘अनुयोग द्वार सूत्र’ है। इसमें असंख्य तक गणना की गई है, जिसका परिमाण 10140 के बराबर है। उस समय यूनान में बड़ी-से-बड़ी संख्या का नाम 'मिरियड' था, जो 10,000 (दस सहस्र) थे और रोम के लोगों की बड़ी-से-बड़ी संख्या का नाम मिल्ली था, जो 1000 (सहस्र) थी। शून्य का उपयोग पिंगल ने अपने छन्दसूत्र में ईसा के 200 वर्ष पूर्व किया था। इसके बाद तो शून्य का उपयोग अनेक ग्रंथों में किया गया है। लेकिन ब्रह्मगुप्त (छठी शताब्दी) पहले भारतीय गणितज्ञ थे जिन्होंने शून्य को प्रयोग में लाने के नियम बनाए। इनके अनुसार-
*शून्य को किसी संख्या से घटाने या उसमें जोड़ने पर उस संख्या पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।*
*शून्य से किसी संख्या का गुणनफल भी शून्य होता है।*
*किसी संख्या को शून्य से विभाजित करने पर उसका परिणाम अनंत होता है।*
*उन्होंने यह गलत कहा कि शून्य से विभाजित करो तो परिणाम शून्य होता है क्योंकि आज हम जानते हैं कि यह अनन्त की संख्या होती है। अब यह निर्विवाद रूप से सिद्ध हो गया है कि संसार को संख्याएँ लिखने की* *आधुनिक प्रणाली भारत ने ही दी है।*
🌹*वेदिका*🌹
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