पेट्रोलियम


पेट्रोलियम का मतलब है पथ्थर का तेल, ये ग्रीक शब्द है । petra= rocks + elaion= oil.

पथ्थर का तेल कुदरती रूप में मिलता है जीस का रंग काला या पिला हो सकता है । ये असली कुदरती पदार्थों से नही बनता है पर जिवाश्म से बनता है, वनस्पति या प्राणी के मृत शरीर से बनता है। इसलिए उसे अश्मिजन्य तेल भी कहा जाता है । ये हाइड्रोकार्बन के विविध रूप है । जुरासिस युग में धरती पर की पूरी जीवसृष्टि धरती में दब गयी थी । धरती में दबा हुआ जीव का शरीर प्रचंड दबाव और गरमी के कारण पथ्थर ( जिवाश्म) बन गया है । उन्हीं पथ्थरों तक पहुंच कर, पथ्थरों में प्रोसेस कर के आज का मानव तेल और गॅस खींच कर लाता है ।  

इतिहास

इतिहास बहुत लंबा और ४००० साल पूराना है । ग्रीस में धनवानो के मेहलों में रोशनी के लिए मशालें जलाते थे ।
इसा पूर्व की छठी सदी में पारसी ( ईरानी ) सैनिक दुश्मन के किले जीतने के लिए क्रुडओइल के हथियारों का उपयोग करते थे । इसा पूर्व 325 में सिकंदर अपने दुश्मनो पर हमला करने के लिए जलती मशाल फैंकता था ।
पूरा इतिहास इस लिन्क पर
http://www.geohelp.net/world.html

1807 तक आम आदमी के लिए ओइल के उपरोग की शुरुआत होती है । लंडन की गलियों में ओइल से जलती बत्तियां लगाई गयी ।
1857 तक लालटेन की खोज और केरोसीन ओइल का व्यापार होने लगा । लकडी की कमी वाले देशों में खाना पकाने के लिए केरोसिन का उपयोग होने लगा ।

तेल बाजार पर तेल माफिया और राजनीति का काला साया ।

1862-1865 के बीच अमरिका में गुलामी प्रथा नाबूत करते कानून विरुध्ध गृहयुध्ध चला तो तेल का भाव अचानक 10 डोलर से बढ कर 120 डॉलर हो गया ।
इस बीच आज जीसे ओइल माफिया कहा जाता है उस ओइल माफिया रोकेफेलर परिवार ने 1863 में क्लेवलेन्ड में ओइल रिफाइनरी की स्थापना कर दी । 1870 तक तो रोकेफेलर ने अमेरिकन बाजार में रिफाएन्ड ओइल का 10% हिस्सा सर कर लिया । 1872 तक रोकेफिलर परिवार की Ohio कंपनी ने 22 हरीफ कंपनियों को खरीद लिया और अपना बाजार हिस्सा 25% तक पहुंचा दिया ।
1877 में रोकेफिलर ने अमरिकन ओइल का 90% बाजार हिस्सा सर कर लिया ।

1885-1890 के बीच बढती मेहंगाई और रोकेफिलर एन्ड कंपनी के ओइल ड्रिलिन्ग काम में पोताही के कारण ओइल का दाम फिर से 80 डोलर पार हो गया । गुस्से में आकर फॅडरल रेग्युलेटर्स ने 1892 में मोनोपोली मिटाने के हेतु रोकेफेलर की कंपनी Standard Oil Company of Ohio को तोड दिया ।

1890-1894 में आम मंदी और अमरिका और रसियन ओइल ने तेल बाजार को 10-11 डॉलर तक नीचे ला दिया ।

1894 में रसिया में ओइल फिल्ड में काम करते क्षेत्र में कॉलेरा का रोग आया और ओइल उत्पादन पर बूरा असर पडा । बाजार ४० डोलर हो गया ।

1895 में ओइल से चलते एन्जिन की खोज हुई और 1896 में हेनरी फोर्ड ने प्रथम मोटरकार लोन्च की । ओइल के व्यापक उपयोग की शुरुआत समजो ।
1903 में फोर्ड मोटर कंपनी बनी । और इसी साल राईट ब्रधर्स ने पहली फ्लाईट उडाई । तेल के उपयोग का दुसरा व्यापक कारण बना ।

1906 में फॅडरल गवर्नमेन्ट ने रोकेफेलर की विश्वासघाती कंपनीयों के विरुध्ध "ऍन्टिट्रस्ट ऍक्ट" के अनुसार केस फाईल किया । ( मात्र जनता को उल्लु बनाने के लिए, बाकी तो सब एक ही छेद से हगते थे । आज सरकार और रिलायन्स के खेल देख लो तो समज जाओगे । )

1907 में ब्रिटन की शेल कंपनी और रॉयल डच मर्ज होकर "रॉयल डच शेल" कंपनी बनी ।
1908 में इरान से ओइल निकाला और "ऍन्ग्लो पर्सियन" कंपनी बनी जो आज "बीपी" के नाम से जानी जाती है । आज उस रोथचिल्ड की बीपी का ३३% हिस्सा भारत की कंपनी रिलायन्स में है ।

1914-1918 के बीच पहला विश्वयुध्ध लडा गया । युध्ध लडानेवाले धनपतियों का इरादा था ओइल सप्लाय और ओइल क्षेत्रों पर अधिकार जमाना । 1917 में ब्रिटन ने बगदाद को जीत भी लिया ।
1920 तक युध्ध का थोडा असर और बढते वाहनो के कारण तेल मार्केट फिर से 40 डॉलर के करीब उपर चला गया ।
1931 तक भयंकर महामंदी के कारण मार्केट 10 डोलर हो गया । प्रबल मान्यता है कि उस महामंदी जनता की कमर तोडने के लिए वॉलस्ट्रीट के धन माफियाओंने जानबूजकर सट्टे के खेल खेलकर सर्जित की थी  ।

हम इस ग्राफ पर नजर करते हैं तो 1939-1945 दुसरा विश्वयुध्ध लडा गया । ओइल मार्केट पर कोइ असर नही पडा । लडनेवाले देशों को लडने के लिए जीतना चाहे तेल मिलता रहा । लडो और जनता का कत्लेआम करो !

1948 में साउदी अरेबिया में दुनिया के सब से बडे विशाल तेल भंडार मिले ।
1954 में ऍन्ग्लो पर्सियन कंपनी का नाम बदल कर ब्रिटिश पेट्रोलियम ( बीपी ) रखा गया ।

1960 में बगदाद में ओपेक संगठन की स्थापना की गयी । (Organization of Petroleum Exporting Countries)  मेम्बर देश थे - साउदी अरेबिया, वेनेजुएला, कुवैत, इराक और इरान ।

1971 में ओपेक देश अपने तेल क्षेत्रों का राष्ट्रियकरण करने लगे । लिबियाने वहां काम करती बीपी कंपनी का राष्ट्रियकरण कर दिया और धन माफियाओं की दुश्मनी मोल ली ।

1972 मे इराक ने राष्टियकरण का मार्ग लिया और तेल क्षेत्रों का राष्ट्रियकरण कर दिया और धनमाफिया की आंखों में कीरकीरी बना ।

1973 में योम किपूर युध्ध हुआ । इजिप्त और सिरियाने इजराईल पर हमला किया । इजराईल का साथ देने के विरोध में, इजराईल के पक्षधर देशो में ओपेक ने ओइल सप्लाय रोक दी । तेल बाजार एक झटके में 55 तक आ गया ।

1975 में वेनेजुएला ने अपने तेल क्षेत्र का राष्ट्रिय करण कर दिया और वो भी धनमाफियाओं का दुश्मन बना ।

1978-1979 में इरान के तेलक्षेत्रों की लूट करने के इरादे से धन माफियाओं ने आयतोल्ला खोमेनी नाम के प्यादे को खडा किया, उस की क्रन्ति को फाईनास किया और इरान के शाह को हटाकर लोकशाही की स्थापना कर दी । उस क्रन्ति के समय शाह ने ओइल एक्पोर्ट रोक दिया था और सभी अमरिकन कोंट्रेक्ट रद कर दिए थे, तो तेल मार्केट उछल कर 105 डॉलर तक चला गया था ।

1980-1988 में दानव नीति के अनुसार खोमेनी ने मुस्लिम कट्टरवाद चलाया । इराक पर भी उसकी नजर थी । उस ने मुजाहुदीन-ए-इराक नाम का लडायक ग्रूप भी बनाया था जीसे इराक में क्रान्ति करनी थी । इराक को यकीन हो गया कि खोमेनी के क्रान्तिकारी इराक में भी क्रान्ति करेन्गे । क्रान्ति हो इस से पहले ही इराक ने इरान पर हमला कर दिया । सतत आठ साल तक दोनो देश के बीच युध्ध लडा गया । धन माफियाओं के इशारे और खोमेनी की मुर्खता के कारण दोनो देश के हजारों सैनिकों और नागरिकों को जान देनी पडी और अर्थतंत्र भी खराब हो गया ।

1986 में साउदी ने ओइल उत्पादन बढा दिया । मार्केट 40 के अंदर चली गई ।

1990 में इराक के सद्दाम हुसेन ने कुवैत पर हमला किया । कुछ कारण थे ।
इरान इराक युध्ध के समय खोमेनी के कट्टरपंथी कुवैत को बरबाद करने के लिए पहुंच गए थे तो सद्दाम ने उन को मार भगाया था और सतत ध्यान रख्खा था, जब भी आए मार भगाए थे । उस के बदले में कुवैत ने इराक को युध्ध लडने में धन की मदद की थी जो बहुत बडी रकम थी। युध्ध में बरबाद हुआ इराक वो रकम चुकाने की हालत में नही था तो दोस्ती का हवाला देकर रकम माफ करने के लिए कहा और खोमेनी के आतंक से बचाने की बात भी याद दिलाई । लेकिन कुवैत नही माना और ओइल के धन्धे में स्पर्धा पर उतर आया । इराक ने अपने क्षेत्र से ओइल चोरी करने का आरोप लगा कर कुवैत पर हमला कर दिया था ।  

1991 रसिया तुट गया । देश के १०-१५  टुकडे हो गए । कारण था धन माफिया के प्यादे गार्बोचेव ने अपने ही देश रसिया में विकास के बहाने देश में "ग्लासनोस्त" और "पेरेस्त्रोइका" नाम के नारे चलाए थे । देश का अर्थतंत्र और देश के रिसोर्सिज को खूला कर दिया जगत भर के धन माफियाओं के लिए और अपने देश के अर्थतंत्र को बरबाद कर दिया था ।

1998 में अस्थिर सरकारें, हर्षद मेहता टाईप के बडे घोटालों के कारण लडखडाती भारत की अर्थ व्यवस्था, समग्र एसिया के अर्थतंत्र में नरमी के कारण  तेल बाजार 20-21 डॉलर तक नीचे आ गया ।

2003 में बीपी ने टीएनके नाम की रसिया की एक बडी कंपनी का 50% हिस्सा खरीद लिया ।
मास किलिन्ग के हथिया बनाने के जुठे आरोप लगा कर अमरिका ने सादाम हुसेन को मार दिया और इराक में राज करने के लिए धन माफियाओं के प्यादे बैठा दिए ।

2005 में धन माफियाओं की इन्टरनेशनल बेन्किन और इवेस्टिन्ग संस्था गोल्डमैन सैक्स ने तेल के दाम बढा कर प्रति बैरल 105 पर स्थिर करने का सुजाव दिया । भारत और चीन की मेहनत से सुधरे एसिया के अर्थतंत्र के कारण तेल का भाव भी बढ गया । अमरिकी नेताने आरोप लगाया कि चीन और भारत के लोग कार में घुमने लगे हैं और परिणाम हमे भुगतने पड रहे हैं तेल के उंचे दाम चुका कर । ( कार में घुमने का अधिकार अमरिकी नागरिक अपनी मां के पेट में लिखवा के पैदा होते हैं )

2006, सितम्बर में शेल, एक्सान और कोनोको फिलिप्स- रसिया में काम करती मल्टिनेशनल कंपनियों पर राष्ट्रवादीयों का दबाव बढा ।

2008 अमरिकन अर्थतंत्र का भांडा फूट गया । उधारी कल्चर में जी रहे नागरिक होमलोन चुकाने में असमथ हो गए । जनता हाउसिन्ग इडस्ट्री और बेंकों की शिकार हो गयी । अमरिका और भारत सहित जगतभर के शेरबाजार धाराशायी हो गए । डॉलर कमजोर हो गया और तेल के भाव 147.27 डॉलर तक चड गया ।

तेल देख लिया और तेल की धार भी देख ली । अब तेल की नयी धार बनी है । बिलकुल नोर्मल नही दिखती है ।

२००८ के बाद १०० के आसपास घुमता तेल का बाजार पिछले कुछ ही महिनों में ५० डोलर के अंदर उतर गया है वो बात समजने जैसी है ।

दुनिया भर में हिसाब किताब बहुत बढ गया है । बहुतों के हिसाब बाकी है । रसिया के पूटिन को युक्रेनवाला हिसाब चुकाना है । रसिया के अर्थतंत्र का बडा हिस्सा तेल के निर्यात पर आधार रखता है । स्पर्धा से तेल के भाव गीरा कर रसिया को बरबाद करना है । धन माफिया दानवों ने खूद पैदा किया कट्टर इस्लामवाद काबू से बाहर चला गया है । ओपेक के मुस्लिम देशों की रिड की हड्डी तोडनी है ताकी वो देश कोइ दखल ना दे सके और आतंकी सिर्फ धन माफियाओं के धन पर निर्भर रहे, उनके ही गुलाम बन के काम करते रहे ।

विश्वगुरु भारत की गुरु दक्षिणा का हिसाब भी अभी तक बाकी था वो भी चुकाना है । इसलिए नही कि भारत ने विश्व को धर्म और संस्कार सिखाए थे, बल्कि इसलिए कि शैतानियत भी दुनिया को भारत ने ही सिखाई थी । ५००० साल पहले महाराज उग्रसेन और उस के १८ बेटों ने राजधर्म छोड कर व्यापारी धर्म अपनाया था और माता लक्ष्मी से पूरी धरती का धन अपने वारिसों के लिए मांग लिया था । तब से लेकर आज तक छलकपट विद्या द्वारा उसने वारिस और अनुयायी बाकी राजाओं के यहां नगर सेठ बन के राजा के पास के आसन पर बिराजमान होते रहे और राज्य का अर्थतंत्र चलाते रहे, राजाओं को लडाते रहे या ऐयाशी का सामान जुटा के ऐयाशी में डूबाते रहे और अपना मनचाहा काम निकालते रहे । दो दुश्मन राजाओं के नगर सेठ कभी दुश्मन नही होते थे । उनका तो आपस में वापार चलता था । राज भक्ति से भली होती है लक्ष्मी भक्ति !

आज भी देखो । भारत के राजा भारत की जनता है और पाकिस्तान के राजा पाकिस्तान की जनता । दोनो राजा दुश्मन है । लेकिन धनपति नगरसेठों की नौकर दोनो सरकार आपस में मित्र है । उनके मालिकों के व्यापारी रिश्ते हैं ।  

तेल के घटते बाजार का भारत के राजा को तो कोइ फायदा नही होना है । भारत में तेल का व्यापार करते धन्नासेठ और उसकी नौकर सरकार ही फायदा उठा रहे हैं । और जनता राजा के मुंडन के लिए जो झाडू उठा है उस झाडू के परिणाम पाने के लिए भी धन तो चाहिए ।

            🌷🌹वेदिका🌷🌹

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