::::::::::::::::::स्वर विज्ञान ::::::::::::::::::: =========================== पृथ्वी पर पाए जाने वाले लगभग सभी जीवमात्र ,यहाँ तक की वनस्पति के लिए जीवन का आधार नाक से ली जाने वाली प्राणवायु है |सभी जीव विभिन्न प्रकार से इस जीवनदायी वायु को ग्रहण करते हैं ,इसी से उनमे जीवन की समस्त क्रियाओ और ऊर्जा उत्पादन होता है ,,इसका ग्रहण करना बंद होने पर जीव मृत हो जाता है |जल बिना तो जीवन कुछ दिनों तक संभव है किन्तु श्वांस बिना मिनटों भी संभव नहीं है |वायु को जीवमात्र द्वारा नासिका द्वारा ग्रहण किया जाता है |इसके ग्रहण करने की प्रकृति का बहुत बड़ा महत्व है |किस प्रकार किस ओर से वायु ग्रहण हो रही है इसका जीव पर गंभीर प्रभाव पड़ता है |विशिष्ट प्रकार से ग्रहण ही प्राणायाम का आधार है ,कुंडलिनी की ऊर्जा का स्रोत है |योग में इसे मूर्धन्य स्थान प्राप्त है |इसकी इन सब विशेषताओं को जानना ही स्वर विज्ञान है | स्वर विज्ञान को जानने वाला कभी भी विपरीत परिस्थितियों में नहीं फँसता और फँस भी जाए तो आसानी से विपरीत परिस्थितियों को अपने अनुकूल बनाकर बाहर निकल जाता है। स्वर विज्ञान एक बहुत ही आसान विद...
*खगोल विज्ञान* यह विज्ञान भारत में ही विकसित हुआ। प्रसिद्ध जर्मन खगोलविज्ञानी कॉपरनिकस से लगभग 1000 वर्ष पूर्व आर्यभट्ट ने पृथ्वी की गोल आकृति और इसके अपनी धुरी पर घूमने की पुष्टि कर दी थी। इसी तरह आइजक न्यूटन से 1000 वर्ष पूर्व ही ब्रह्मगुप्त ने पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण सिद्धान्त की पुष्टि कर दी थी। यह एक अलग बात है कि किन्हीं कारणों से इनका श्रेय पाश्चात्य वैज्ञानिकों को मिला। *भारतीय खगोल विज्ञान का उद्भव वेदों से माना जाता है।* वैदिककालीन भारतीय धर्मप्राण व्यक्ति थे। वे अपने यज्ञ तथा अन्य धार्मिक अनुष्ठान ग्रहों की स्थिति के अनुसार शुभ लग्न देखकर किया करते थे। शुभ लग्न जानने के लिए उन्होंने खगोल विज्ञान का विकास किया था। वैदिक आर्य सूर्य की उत्तरायण और दक्षिणायन गति से परिचित थे। वैदिककालीन खगोल विज्ञान का एक मात्र ग्रंथ ‘वेदांग ज्योतिष’ है। इसकी रचना ‘लगध’ नामक ऋषि ने ईसा से लगभग 100 वर्ष पूर्व की थी। महाभारत में भी खगोल विज्ञान से संबंधित जानकारी मिलती है। महाभारत में चंद्रग्रहण और सूर्यग्रहण की चर्चा है। इस काल के लोगों को ज्ञात था कि ग्रहण केवल अमावस्या और पूर्णिमा को ही...
#न्यूटन और #गुरुत्वाकर्षण: वेद और वैदिक आर्य ग्रन्थों में गुरूत्वाकर्षण के नियम को समझाने के लिये पर्याप्त सूत्र हैं। परन्तु वेदों के इस “गुरूत्वाकर्षण सिद्धान्त” को आज “न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण का नियम (Newton's Law Of Gravitation ) के नाम से पढ़ाया जा रहा है,जबकि सत्य यह है कि न्यूटन के जन्म से भी पहले हमारे वेदों में इसका उल्लेख है और वेदों के बाद कालांतर में अन्य लगभग 8-15 आचार्यों ने “गुरूत्वाकर्षण सिद्धान्त” का स्पष्ट वर्णन ग्रंथों में किया है इसलिए “गुरूत्वाकर्षण सिद्धान्त” का नाम “न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण का नियम (Newton's Law Of Gravitation ) ना होकर “वेदों का गुरुत्वाकर्षण का नियम ( Veda's Law Of Gravitation ) होना चाहिए । अनेकों प्रमाण हैं कि हमारे ऋषियों ने जो बात पहले ही वेदों में कही थी उसके सामने ये Newton कितना ठहरते हैं। न्यूटन जी ने जो #गति_के_नियम बताए हैं वह भी #भास्कराचार्य_जी से कॉपी किये हुए हैं। प्रारम्भ वेद से करते हैं और उसके बाद आचार्यों का वर्णन करते हैं: 1● ऋग्वेद में गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत का वर्णन :- ▶ यदा ते हर्य्यता हरी...
राधे राधे
ReplyDelete