प्राण का वैज्ञानिक स्वरूप
शरीर में प्राण का प्रवाह ******************************************** विज्ञानवेत्ताओं ने इस संसार में ऐसी शक्ति का अस्तित्व पाया है जो पदार्थों की हलचल करने के लिए और प्राणियों को सोचने के लिये विवश करती है। कहा गया है कि यही वह मूल प्रेरक शक्ति है जिससे निःचेष्ट को सचेष्ट और निस्तब्ध की सक्रिय होने की सामर्थ्य मिलती है। वस्तुएं शक्तियां और प्राणियों की विविध विधि हलचलें इसी के प्रभाव से सम्भव हो रही हैं। समस्त अज्ञात और विज्ञात क्षेत्र के मूल में यही तत्व गतिशील है और अपनी गति से सब को अग्रगामी बनाता है। वैज्ञानिकों की दृष्टि में इसी जड़ चेतन स्तरों की समन्वित क्षमता का नाम प्राण होना चाहिये। पदार्थ को ही सब कुछ मानने वाले ग्रैविटी, ईथर, मैगनेट के रूप में उसकी व्याख्या करते हैं अथवा इन्हीं की उच्च स्तरीय स्थिति उसे बताते हैं। चेतना का स्वतन्त्र अस्तित्व मानने वाले वैज्ञानिक इसे ‘साईकिक कोर्स लेटेन्ट हीट’ कहते हैं और भारतीय मनीषी उसे प्राणत्व कहते हैं। इस सन्दर्भ में भारतीय तत्व दर्शन का मत रहा है कि प्राण द्वारा ही शरीर का अस्तित्व बसा रहता है। उसी के द्वारा शरीर का पोषण, पुनर