शिवतत्त्व
ॐ कार सहित शिव लिंग संहिता ॐ कार का अर्थ एवं महत्त्व ॐ = अ+उ+म+(ँ) अर्ध तन्मात्रा। ॐ का अ कार स्थूल जगत का आधार है (रजोगुण सहित स्रष्टि की रचना) । उ कार सूक्ष्म जगत का आधार है (सत्व गुण सहित सूक्ष्म रूप से स्रष्टि की पालन कार्य , जीव अंश प्रधान करता है )। म कार कारण जगत का आधार है (तमो गुण सहित संपूर्ण द्रष्य स्रष्टि को लय करता है । अर्ध तन्मात्रा (ँ) जो इन तीनों जगत से प्रभावित नहीं होता बल्कि तीनों जगत जिससे सत्ता- स्फूर्ति लेते हैं यही त्रिगुणात्मक शक्ति है (०) बिंदु (शुन्य ) अर्थात अवर्णनीय ,अपरिमित , अविरल ( दुर्लभ ),अखंड , शाश्वत चित्त( चित्त -ज्ञान), ,शक्ति विशिष्ट शिव का अव्यक्त रूप ,अनिर्वचनीय ( वाचा जिसे ना पकड़ पाए) , ,अगोचर , सिद्धांत शिखा मणि मे इस तत्व के लिए वर्णन आता है..”अपरप्रत्यम ( जो दूसरों को न दिखाया जा सके )शान्तम( शांत रूप ) प्रपंचैर अप्रपंचितम( रूप रस आदि प्रपंचैर गुणों की तरह जिसका वर्णन ना किया जा सके…वह इनसे नहीं जुड़ा है … ) निर्विकलाप्म( कल्पना से परे ..जिसकी कल्पना भी नहीं कर सकते ) अनानार्थम( अनेकानेक अर्थों से भी हम जिसका अर्थ ना कर सकें ) एतत