ब्रह्मा--ईश्वर
ब्रह्मा - #परब्रह्मा १. #सृष्टि_पूर्व -ऋग्वेद के नासदीय सूक्त के अनुसार (१०/१२९/१ व २ ) - "न सदासीन्नो सदासीत्तादानी। न सीद्र्जो नो व्योमा परोयत। एवं --"आनंदी सूत स्वधया तदेकं। तस्माद्वायन्न पर किन्चनासि।" अर्थात #प्रारंभ में न #सत् था, न #असत, न परम व्योम व व्योम से परे लोकादि; सिर्फ वह एक अकेला ही स्वयं की शक्ति से, गति शून्य होकर स्थित था इस के अतिरिक्त कुछ नहीं था। कौन, कहाँ था कोइ नहीं जानता क्योंकि -- "अंग वेद यदि वा न वेद " वेद भी नहीं जानता क्योंकि तब ज्ञान भी नहीं था। तथा --""अशब्दम स्पर्शमरूपंव्ययम् ,तथा रसं नित्यं गन्धवच्च यत ""-(कठोपनिषद १/३/१५ )--अर्थात वह परब्रह्म अशब्द, अस्पर्श, अरूप, अव्यय, नित्य व अनादि है । भार रहित, स्वयम्भू, कारणों का कारण, कारण ब्रह्म है। उसे ऋषियों ने आत्मानुभूति से जाना व वेदों में गाया।( यह विज्ञान के एकात्मकता पिंड के समकक्ष है जो प्रयोगात्मक अनुमान प्रमाण से जाना गया है।) २. #परब्रह्म का भाव संकल्प - उसने अहेतुकी सृष्टि -प्रवृत्ति से, सृष्टि हित भाव संकल्प किया तब 'ॐ' के रूप में