गाना गाने वाले मँदिर के खँभे

भारत मे ऐसे कई मँदिर है जिनके पत्थरों से बने खँभे भी सँगीत गाते हैं।
   कर्नाटक मे बेल्लारी जिले मे स्थित हम्पी एक अत्यंत प्राचीन भारतीयसभ्यता का अजस्र नमूना है जो समृद्धि की कहानियों को स्वयं के खँडहरो मे भी व्याप्त वैभव के माध्यम से बयान करता आ रहा है।तुँगभद्रा नदी के तट पर स्थित ये नगर अतीत मे दक्षिण के प्रभावशाली क्षेत्र विजयनगर साम्राज्य के नाम से विख्यात था हालांकि इसमें और भी कुछ नगर थे और ये इस साम्राज्य की राजधानी थी।लगभग तेरहवीं शताब्दी मे ये नगर अपनी समृद्धि के परवान था इसकी स्थापना हरिहर और बुक्का नाम के दो प्रतापी भाईयों ने की थी तथा इनमें सबसे अधिक लोकप्रिय होने वाले राजा कृष्णदेवराय थे जिनकी कहानियां तेनालीराम से जोडकर कही जाती है।यहां राजाओं को अनाज,सोने और रूपयो से तौला जाता था और उसे गरीब लोगों मे बाँट दिया जाता था। खँडहरो मे तब्दील हो चुका ये नगर आज भी अपनी अप्रतिम सुँदरता के लिए यूनेस्को की विश्व धरोहर मे शामिल है। यहां महल की रानियों लिए बडे मेहराबदार गलियारों, झरोखेदार गलियारों, झरोखेदार छज्जों और कमल के आकार के फव्वारों से सुसज्जित है।इसके अलावा कमलमहल और जनानाखाना भी ऐसे आश्चर्यों मे शामिल हैं।एक सुँदर दोमँजिला स्थान जिसके मार्ग ज्यामितीय ढँग से बने हैं और धूप -हवा लेने के लिए फूल की पत्तियों की तरह बने हैं। यहां हाथीखाने के प्रवेश द्वार और गुँबद मेहराबदार  बने है और शहर के शाही प्रवेशद्वार पर हजारा राममंदिर बना है। काले पत्थरों की अद्भुत सुँदरता लिए ये नगर विशाल गोल चट्टानों के टीलों मे विस्तृत है।घाटियों और टीलों के बीच पाँचसो से भी अधिक स्मारक चिन्ह हैं।इनमें मँदिर, महल,तहखाने,जलखँडहर,पुराहरने बाजार, शाहीमँडप,गढ,चबूतरे, राजकोष आदि असँख्य इमारतें हैं।हरसाल यहां हजारों की सँख्या मे पर्यटक और तीर्थयात्री आते हैं। इन सबके बीच जो सबसे अधिक आश्चर्य और चमत्कारिक चीज है यहां बना विष्णु भगवान के अवतार विठ्ठल महाराज का 56 खँभो पर बना मँदिर जिसके खँभो पर हथेली पीटने पर सारेगामा की सुरध्वनि आती है।हर खँभे पर सँगीत के अलग अलग स्वर फूटते हैं, इन खँभो को सारेगामा पिलर्स कहा जाता है।निःसंदेह ये अपनी इस विशेषता वाली इस विश्व की एकमात्र इमारत है इसके खँभो को थपथपाने पर सँगीतलहरियाँ निकलती है।ये एक अत्यंत शानदार इमारत है,इसके हाल के पूर्वी हिस्से मे एक प्रसिद्ध शिलारथ है जो वास्तव मे पत्थर के पहियों से चलता है।इन खँभो से आ रही ये ध्वनि विज्ञान के सिद्धांतों से नहीं तौली जा सकती ये तो मानवमन की दक्षकला का नायाब नमूना है।।हजारों वर्ष पूर्व ये कला किस तकनीक के आधार पर विकसित की गई होगी,ये आज के वैज्ञानिकों,वास्तुकारों के लिए भी यक्षप्रश्न ही है। ये विजयविठ्ठल मँदिर 15वी शताब्दी मे बना था।इस मँदिर के खँभे मे सँगीतस्तँभ है जो अँगूठे के साथ मारा जाने पर विभिन्न सँगीतवाद्य यँत्रो की आवाज उत्पन्न करते हैं(यानि,एक प्रकार का आवेग- जैसे उत्तेजना)।एक खँभे से दर्ज ध्वनि घँटी की तरह आवाज उत्पन्न करने के लिए पाया जाता है।इसके अलावा, एक स्तँभ मे ऐसे स्तँभो की मोडल गतिशीलता के लिए एक विश्लेषण प्रस्तुत किया जाता है ताकि फ्लेक्शल आवृत्तियों को इसके ईजीनमोड्स के साथ मिल सके।ये देखा गया था कि खँभे और वास्तविक घँटी ध्वनि से घँटी की तरह ध्वनि की स्पेक्ट्रल(अनुनाद) विशेषताओं के बीच घनिष्ठ सँबँध है।खँभे की मापावृत्तियों को भी टीगर के ऊर्जा आपरेटर के आधार पर यूलर बरनोली बी मोडल और ऊर्जा पृथक्करण ऐल्गो रिदम (इएसए) से प्राप्त फ्लेक्शरल आवृत्तियों के साथ घनिष्ठ समझोते मे पाया गया है।ये मोडल खँभे के सँगीत स्तँभो से घँटी की तरह ध्वनि की गूँज आवृत्तियों की सही भविष्यवाणी करता है।इस प्रकार इन खँभो मे सारेगामा की ध्वनि आज भी सुनी जा सकती है,भारत सँगीत की विरासत रहा है,सारेगामापधनि ये सप्तस्वर की चमत्कारिक साधना आज भी शास्त्रीय सँगीत की आत्मा है हालांकि आज इस परम आनँददायीसँगीतकला से युवा पीढ़ी कट रही है क्योंकि विभिन्न रागों से गाया जाने वाला ये सँगीत क्लिष्ट होता है और उचित प्रोत्साहन के अभाव मे जो शास्त्रीयसँगीतकार है वो बूढे होते जा रहे हैं।
इस क्रम मे तिरुनेलवेली मे नेल्लीपर मँदिर मे चार सँगीतखँभे है उनके पास एक केँद्रीय खँभा है जिसके चारो ओर अलग अलग परिधि के 48 छोटे बेलनाकार खँभे है।जब उन्हें टेप किया जाता हो तो वे अलग अलग ध्वनियां देते है।जब स्तँभ को टेप किया जाता है तो पडोसी खँभे से सहानुभूति पूर्ण कँपन होती है।
शुचिब्राम मे थनुमालययन मँदिर मे चारसँगीतस्तँभ है।केँद्रिय स्तँभ चौबीस या तेतीस छोटे खँभे से घिरा हुआ है।
यही तथ्य मदुरै का मीनाक्षी मँदिर भी प्रस्तुत करता है।यहां इसके अँदर भी पाँच सँगीतखँभे है जो मोनोलिथ है।बडे केँद्रीय खँभे 22 छोटे स्तँभो से घिरा हुआ है।
टेलनाडु मे नँगुनेरी के नजदीक शेनबागरमा नल्लूर के शिवानकोइल मे छोटे खँभे है,जिनके छेद मे अगर हवा उडा दी जाती है तो वे शँख या सीँग की आवाज निकाल दैते हैं।
श्री के.के.पिल्लई ने थिरूमालय मँदिर पर अपनी पुस्तक मे गहराई से सुचँद्रम् सँगीत स्तँभो के बारे मे लिखा है कि दो उत्तरी समूह प्रत्येक चौबीस स्तँभो के समूह को प्रस्तुत करते हैं, जबकि दक्षिणी लोग 33 के प्रत्येक समूह को प्रस्तुत करते हैं।एक हडताली विशेषता ये है कि प्रत्येक समूह के सभी खँभे,साथ ही प्रत्येक समूह के शीर्ष पर उत्कृष्ट नक्काशीदार बुर्ज के छिद्रित होते हैं।ग्रेनाइट के एक चट्टान से बाहर एक समूह मे प्रत्येक खँभे पर एक टेप अलग ध्वनि पैदा करता है।उन्होंने कहा कि ध्वनि की गुणवत्ता तिरुनेलवेली सँगीतस्तँभो जितनी अच्छी नहीं है।
 मदुरै जनरल अस्पताल मे एँड इँस्टीट्यूट  के चीफ डाँ एस केमेश्वरम् की अगुवाई मे एक      मेडिकल टीम ने मीनाक्षीमँदिर के सँगीतस्तँभो पर जो अध्ययन किया (इँडियन एक्सप्रेस न्यूज रिपोर्ट,23जुलाई1981)।खँभे के समूह अनुनाद पत्थर का विशाल ब्लोक दो छडो के साथ खेला गया जो शिरो पर एक कठिन हडताली घुँडी के साथ प्रदान किया गया था।कलाकार विपरीत पक्षों पर खडे थे और खँभे पर खेला सोलो सँगीत के साथ साथ सँगत उनके द्वारा प्रदान किया गया था।जतिया होल पर खेलकर नृत्य के प्रदर्शन के लिए तालबद्ध सँगतता दी गई थी,खँभे से निकलने वाले नोटों का स्वर कोलू 'थला अलाँगाराम' के स्वर रँग जैसा दिखता है।
सुचँद्रम्  सँगीतस्तँभो मे उत्कृष्टता की चोटी पर पहुंच गया है। उच्चनिष्ठा,टेपरिकार्डर,लकडी के पौधै और इँचटेप वाले इन खँभो का अध्ययन, खँभे,ध्वनि रिकार्डिंग और विश्लेषण का भौतिक माप और मोडल बिँदुओ की पहचान शामिल था।रोक नमूना(खँभे से )का विश्लेषण चेन्नई के प्रेसिडेंसी कोलेज के भूविज्ञान विभाग मे किया गया था।जियोलॉजी के प्रोफेसर डा.सुब्रमणिना के अनुसार, सिलिका मे समृद्ध चट्टान कर्नाटक के हम्पी के पास होसपेट मे काफी प्रचुर मात्रा मे है।
बहुत समय पहले मँदिरो मे सँगीत स्तँभो(अँग्रेजी मे)पर एक शोध विद्वान द्वारा पुस्तक प्रकाशित की गई जिसमें भारत की इस अद्वितीय कला की विशद व्याख्या की गई।हमारे पूर्वजो की भक्ति ऐसी थी कि पत्थर भी गीत गाने को मजबूर हो जाया करते थे।आज मेरे देश के कुछ तथाकथित विद्वान लोग भगवान और उनके प्रति हमारी आस्था पर ढोँग और अँधविश्वास का आरोपण करते है लेकिन ये भूल जाते है कि हमारी इस परँपरा की वैज्ञानिकता के आगे कोई टिकने की दूर दूर तक नहीं सोच सकता।आशा है मेरा ये लेख आपको पसँद आएगा।
     निरँजनप्रसाद पारीक
                     वेदिका

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